जमशेदपुर।बर्मामाइंस थाना एक बार फिर सवालों के घेरे में है। थाना प्रभारी दिलीप कुमार यादव के निजी ड्राइवर रतन और हवलदार लाल्टू गोप पर एक पत्रकार के भाई को छोड़ने के एवज में 12,500 रुपये घूस लेने का गंभीर आरोप लगा है। इस अवैध वसूली का वीडियो भी सामने आया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक दोनों आरोपियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की विभागीय कार्रवाई नहीं की गई है।
घटना 28 सितंबर की रात की बताई जा रही है। जानकारी के अनुसार, रात करीब एक बजे पुलिस ने बर्मामाइंस थाना क्षेत्र से एक युवक को बिना किसी लिखित आरोप के उठा लिया। परिजनों को इसकी कोई सूचना नहीं दी गई। जब परिजन सुबह थाने पहुंचे, तो थाना प्रभारी के ड्राइवर रतन और हवलदार लाल्टू गोप ने युवक को छोड़ने के बदले 15,000 रुपये की मांग की। परिजनों ने जब कारण पूछा, तो रतन ने हंसते हुए कहा — “कुछ न कुछ गलती किया होगा, तभी तो पुलिस पकड़ कर लाई है।”
आरोप है कि रतन ने थाना प्रभारी के नाम पर 12,000 रुपये, जबकि लाल्टू गोप ने 500 रुपये लिए। परिवार ने किसी तरह रकम जुटाकर युवक को छुड़ाया। पीड़ित पक्ष का कहना है कि उन्होंने ऐसा सिर्फ इसलिए किया ताकि यह उजागर किया जा सके कि थाने में किस तरह झूठे मामलों में फंसाकर उगाही की जाती है।
जब इस मामले का वीडियो सामने आया और थाना प्रभारी दिलीप कुमार यादव से पूछा गया, तो उनका बयान और भी विवाद पैदा करने वाला रहा। उन्होंने कहा — “जांच कर लेंगे, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा — सस्पेंड ही न होंगे।” उनका यह लापरवाह रवैया अब पुलिस तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
बताया गया कि यह वीडियो और शिकायत 28 सितंबर को ही सिटी एसपी कुमार शिवाशीष को भेजी गई थी। उन्होंने जवाब दिया कि मामला संबंधित डीएसपी को जांच के लिए सौंपा गया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। इतना ही नहीं, आरोपी ड्राइवर रतन आज भी थाने में ड्यूटी पर तैनात है।
घटना के पीड़ित पत्रकार परिवार से जुड़े हैं, जिससे पत्रकार समाज और आम नागरिकों में नाराजगी और अधिक बढ़ गई है। स्थानीय पत्रकारों का कहना है — “जब पत्रकार परिवार के साथ ऐसा हो सकता है, तो आम नागरिकों के साथ क्या होता होगा?”
स्थानीय निवासियों और समाजसेवियों ने भी पुलिस विभाग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। एक वरिष्ठ नागरिक ने कहा — “अगर थाने में बैठा ड्राइवर और हवलदार ही रिश्वत लेने लगे, तो आम आदमी कहां जाएगा? पुलिस की साख लगातार गिरती जा रही है।”
घटना के बाद से सामाजिक संगठनों और नागरिकों ने प्रशासन से चार प्रमुख मांगें रखी हैं — आरोपी ड्राइवर और हवलदार का तत्काल निलंबन, स्वतंत्र एजेंसी से जांच, थाने के सीसीटीवी फुटेज की ऑडिट, और पीड़ित परिवार को सुरक्षा व कानूनी सहायता।
इस पूरे मामले में पुलिस विभाग की चुप्पी सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है। न तो कोई आधिकारिक बयान जारी हुआ है और न ही जांच की प्रगति सार्वजनिक की गई है। यह चुप्पी न केवल विभाग की छवि को नुकसान पहुंचा रही है बल्कि जनता के विश्वास को भी कमजोर कर रही है।
बर्मामाइंस थाना में रिश्वतखोरी का यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि सिस्टम में जड़ जमा चुकी लापरवाही और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। जब कानून की रखवाली करने वाले ही नियम तोड़ने लगें, तो न्याय और सुरक्षा दोनों पर खतरा मंडराने लगता है। जनता अब निष्पक्ष जांच, सख्त कार्रवाई और जवाबदेही की मांग पर अडिग है।

