बकरी चोर संतोष बन गया ड्रग्स तस्करी का बादशाह, कई राज्यों में करता है अफीम की सप्लाई

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चतरा:झारखंड के चतरा जिला के हंटरगंज प्रखंड के छोटे से गांव करैलीबार का युवक संतोष सिन्हा ड्रग्स तस्करी का बादशाह बन गया है। छोटी-छोटी चोरियों के रास्ते अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले इस शख्स ने उग्रवादियों की अंगुली पकड़ देश के कई शहरों तक अपना संजाल फैला लिया है। सोमवार को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उसे आठ किलोग्राम हेरोइन के साथ रंगेहाथ पकड़ा है। फिलहाल पुलिस उससे पूछताछ के आधार पर उसका संजाल खंगाल रही है। पुलिस रिकार्ड के अनुसार कम उम्र से ही संतोष बिना ज्यादा परिश्रम के रातोंरात धनाढ्य बनने का सपना देखने लगा और गलत राह पकड़ ली। 2005 की बात है जब वह इलाके की बकरी चुराकर उसे बेचने का काम उसने शुरू किया। छोटी वारदातों को अंजाम देते हुए वर्ष-2008 में उसका जुड़ाव उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ से हो गया। संगठन में अपनी पैठ बनाने के लिए उसने एक निजी यात्री बस को फूंक दिया था। बस फूंकने के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा। यहां से वह अपराध के दलदल में और धंसता चला गया। पोस्ते की खेती पर उसकी नजर गई। उग्रवादी अपनी देखरेख में संगीनों के साये में जंगल काट मौत की फसल को उगा रहे थे। शहर और कस्बाई बाजारों के साहूकारों की पूंजी भी इसमें लगी थी। पुलिस थाने से लेकर कानूनी दांव-पेच की दुनिया में दखल रखने वाले दबंग और दलाल किस्म के लोग इसके संरक्षक बने हुए थे। कत्था तस्करी के बाद पोस्ता खेती संरक्षण के एवज में प्राप्त रंगदारी उग्रवादियों की अर्थव्यवस्था का आज भी बड़ा आधार है। संतोष को तब अपने संगठन के लिए लेवी वसूलने का दायित्व मिला। संतोष पोस्ता से अफीम, चरस और दूसरे ड्रग्स बनाकर देश के विभिन्न शहरों तक तस्करी के बड़ा संजाल से जल्द ही वाकिफ हो गया। वह इससे पूरी तरह इससे जुड़ गया और खुद का धंधा खड़ा करने की सोचने लगा, लेकिन उग्रवादियों के रहते वह खुद बादशाह नहीं बन सकता था। कुछ ही वर्षों बाद जब उसके इलाके में उग्रवाद की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ी तो उसे अपने धंधे को खड़ा करने का मौका मिल गया। उसने अफीम का अपना अलग साम्राज्य खड़ा कर लिया। साथ ही उग्रवादियों की सप्लाई चेन भी बन गया। उसने न सिर्फ उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के विभिन्न शहरों तक अपना संजाल विकसित किया, अपितु अपने ग्राहकों को कच्ची अफीम से हेरोइन बनाकर माल सप्लाई करने लगा। इस धंधे से उसने खूब कमाई की। रांची में उसने आठ करोड़ का मकान खरीदा है। कई जगह अपनी पूंजी लगा रखी है।

पैतृक गांव करैलीबार में वह भव्य मकान बनवा रहा है। ड्रग्स की तस्करी में पहली बार वह 2017 में अफीम के साथ चतरा पुलिस के हत्थे चढ़ा। एक साल वह जेल में रहा। जेल से निकलकर वह फिर से इस धंधे में लिप्त हो गया। उसका भाई विनोद सिन्हा भी अफीम तस्करी में जेल जा चुका है। पुलिस को चकमा देने के लिए संतोष अक्सर अपनी गाड़ी बदल लेता है, एक बार फिर वह पुलिस की गिरफ्त में है।