शहर में किसी व्यवसायी के यहां यदि कोई घटना घटती है तो जितनी तकलीफ व्यापारियों को होती है, उससे ज्यादा चिंतित जिला प्रशासन एवं पुलिस महकमा भी होता है। हाल ही में एक व्यावसायिक संगठन के सचिव के यहां जुगसलाई में घटना हुई, संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि डकैती हुई है, लेकिन बाद में पुलिस अनुसंधान में यह मामला निकला कि उपरोक्त व्यवसायी के कर्मचारी की ही मिलीभगत से घटना हुई थी।
आज पुनः वैसी ही एक घटना बिष्टुपुर में एक बड़े व्यापारी के यहां घटी। घटना के कुछ ही देर में पुरा पुलिस महकमा सक्रिय हो गया, वरीय पुलिस अधीक्षक द्वारा एस आई टी का गठन किया जा चुका है और अनुसंधान जारी है। किंतु बार बार दोहराने वाली गलती हम व्यापारी वर्ग से भी की जा रही है। आखिर इतनी बड़ी रकम के लिए कैश कलेक्शन वैन क्यों नहीं बुलवायी गयी ? यदि खुद के कर्मचारियों को ही भेजना था तो थाना को इंफॉर्म क्यों नहीं किया गया ? पीड़ित के शोरूम में बंदूकधारी गार्ड्स रहते हैं, एक गार्ड को साथ क्यों नहीं भेजा गया ? ऐसी लापरवाही क्यों बरती गई? शोरूम से बैंक की दूरी मात्र 50 मीटर है, आखिर अपराधियों को कैसे पता लगा कि कर्मचारी रुपए लेकर निकलने वाला है, क्या उनलोगो को पूर्व से खबर थी? इन बहुत सारे बड़े प्रश्न चिन्हों के बावजूद व्यवासायिक संगठन द्वारा एक घंटे का सांकेतिक काला बिल्ला प्रदर्शन क्या केवल बड़े शोरूम वाले व्यापारी को यह जताना नहीं है कि संगठन उनके साथ है ? या प्रशासन पर बिना वजह दबाव बनाने की रणनीति है? व्यापारी नेता कमल किशोर अग्रवाल एवं संदीप मुरारका ने एक ओर शहर में घट रही घटनाओं के प्रति चिंता व्यक्त की तो दूसरी ओर व्यापारियों को सुरक्षित ढंग से कैश हैंडलिंग करने के लिए सभी सम्भावित उपाय करने की गुज़ारिश भी की। नेताद्वय ने यह भी जोड़ा कि बेवजह इस तरह की घटनाओं का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। सयंम बरतना चाहिए, पुलिस को निष्पक्षतापूर्वक उनका कार्य करने देना चाहिए।
व्यवसायिक संगठन जितनी तत्परता बड़े कारोबारियों के हित में दिखाता है, उतनी ही छोटे व्यापारियों के लिए भी दिखानी चाहिए। छोटे व्यापारी जब संगठन के पास पहुंचते हैं तो उनसे पत्र व प्रमाण मांगे जाते हैं।