महुआडांड़
नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज को लेकर महुआडांड़ के टुटवापानी विरोध एवं संकल्प दिवस मौक़े पर हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया।संघर्ष जारी करने का संकल्प दोहराया। साथ ही वक्ताओं ने लोगों को संबोधित करते हुए आंदोलन की पृष्ठभूमि को रखा।
प्रकृति की वादियों के बीच बसे नेट हटके टूटू आप पानी में गुमला लातेहार सहित झारखंड के विभिन्न हिस्सों से हजारों आदिवासियों ने 22 एवं 23 मार्च को दीवार रात्रि डटकर संघर्ष जारी करने का संकल्प दोहराया ।जन संघर्ष के अगुवा साथियों कोनेलियुस मिंज,अनिल मनोहर,रोश खाखा,सीराज दत्ता,मंथन मानव झारखंड जनाधिकार महासभा ,प्रदीप मिंज ने लोगों को संबोधित करते हुए आंदोलन की पृष्ठभूमि को रखा।तब आदिवासी कोई विरोध नहीं कर पाते थे।
1956 में तत्कालीन बिहार सरकार ने मैनुवल वर्ष फील्ड फायरिंग एंड आटीलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938 की धारा 9 के तहत अधिसूचना जारी की।इतना वर्षों हम आदिवासी कोई विरोध नहीं कर पाते थे ।क्योंकि हम असंगठित और असहाय थे। लेकिन अधिसूचना की अवधि समाप्त होने से पूर्व 1991 में तत्कालीन बिहार सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए न केवल तोपाभ्यास की अवधि का विस्तार किया बल्कि अधिसूचित क्षेत्रों का एक विशाल दायरि भी बढ़ा दिया गया। इस अधिसूचना के अंतर्गत 1471 किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र और 245 गांव को चिन्हित किया वह वक्त के हिसाब से 250000 लोग जिसमें 90 से 95% आदिवासी थे विस्थापित कर दिए जाने वाले थे। देश के विकास के नाम पर सदियों से विस्थापन का दंश झेल रहे आदिवासी किसी कीमत पर इस अधिसूचना को लागू नहीं होना देना चाहते थे।
बच्चे बुढें महिलाए सेना की गाड़ियों को रोकते हुए सड़कों पर लेट गई।
केंद्रीय जन संघर्ष समिति के नेतृत्व में गांव गांव से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोध की आवाज उठने लगी। संघर्ष का केंद्रीय नारा था जान देंगे जमीन नहीं ।इसी बीच 22 -23 मार्च 1994 को सेना की टुकड़ी अभ्यास के लिए अधिसूचित क्षेत्र में प्रवेश करने वाली थी। इधर केंद्रीय जन संघर्ष समिति के आह्वान पर प्रभावित क्षेत्र के लाखों आदिवासी जिसमें बच्चे बूढ़े जवान और अत्यधिक संख्या में महिलाएं टूटूवापानी एकत्रित होकर सेना की गाड़ियों को रोकते हुए सड़कों पर लेट गई ।पूरा वातावरण जान देंगे जमीन नहीं देंगे भारतीय सेना वापस जाओ ,वापस जाओ के नारों से गूंज उठा ।अंत में सेना को मजबूर होकर युद्धाभ्यास का कार्यक्रम रद्द करते हुए वापस लौटना पड़ा।
प्रभावित क्षेत्र के आंदोलनरत आदिवासियों में इसे एक ऐतिहासिक जीत का एहसास किया ।तब से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष 22-23 मार्च को विरोध एवं संकल्प दिवस के रूप में एकत्रित होते हैं।
प्रखंड के लाडू और कुजरुम गांव का मुद्दा भी उठाया गया।
ढाई दशकों से चले आ रहे आदिवासी का यह आंदोलन पूरी तरह से अंहिसक लोकतांत्रिक आंदोलन का एक मिसाल बन चुकी है। देश और राज्य के विभिन्न हिस्सों में चल रहे आंदोलनकारियों को इस आंदोलनों को इस आयोजन से बहुत कुछ सीख लेने की आवश्यकता है। इस मौके पर बोलते हुए केंद्रीय जन संघर्ष समिति के सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने विस्थापन के मंडराते बादल गारू प्रखंड के लाडू और कुजरुम गांव को मुद्दा उठाते हुए कहा जिन प्रस्तावित गांव का वन विभाग विस्थापित कर बसाना चाहती है। उस जमीन को अब तक विभाग व मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला है। दूसरा पांचवी अनुसूचित क्षेत्र से गैर अनुसूचित क्षेत्र में पुनर्वासित करने से उन सभी परिवारों के संविधानिक अधिकार छीन जाएंगे। तीसरा जब तक पुनर्वासित गांव राजस्व गांव में हस्तांतरित करने की सरकारी प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है ।तब तक विकास कार्य अभी की तरह ही प्रभावित रहेगी ।आखरी बात की सरकार अधिसूचना के हिसाब से अभी दलित आदिवासी को जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए 1950 ई का खतियान दस्तावेज लगाना पड़ता है। क्या वन विभाग विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित गांव में 1950 से पूर्व का खतियान प्रदान करने की गारंटी करेंगे।
प्रोफेसर ज्याद्रेज ने भी किया सभा को सम्बोधित।
सभा को सम्बोधित करते हुए प्रोफेसर ज्याद्रेज ने कहा कि यह आन्दोलन बिना हाथियार के साथ लड़ा जा रहा है। जहां अहिंसात्मक सत्याग्रह आंदोलन किया जा रहा है। यह खुद से जनता उनके द्वारा किया जा रहा सबसे बड़ा आंदोलन है। जिसके माध्यम से लोग कई वर्षों से इसने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विरोध करते हुए अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने का काम कर रही है ।उन्होंने आगे बताया कि गारू प्रखंड के लाटू और कुजरूम गांव के विस्थापन और पुर्नवास में वन विभाग द्वारा ना ही मुझसे कभी किसी प्रकार की सहमती ली और न ही कोई बात हुई है। वन विभाग द्वारा गलत भ्रम फैलाया जा रहा है कि मुझे इस बात की जानकारी दी है लोग विभाग के बहकावे में ना आवे। मौके पर पीटर,जेम्स हेरेंज,अभय मिंज,मगदली टोप्पो, जीवंती बड़ा, अजित पाल कुजूर सहित प्रभावित क्षेत्र के हजारों की संख्या में लोग विरोध दिवस में भाग लिए।
संवाददाता शहजाद आलम महुआडांड़ से रिपोर्ट बबलू खान की