चाईबासा
रूँगटा प्रबन्धन द्वारा अपने मजदूरों के उपर कर रहे शोषण – जुल्म को लेकर लगातार आन्दोलन चल रहा है लेकिन प्रशासन अपने स्तर से इन मजदूरों को न्याय दिलाने का कोई भी प्रयास नहीं कर रही है, यह बहुत दुःखद बात है।
आज फिर से आन्दोलन को आगे बढ़ाते हुए रूँगटा माईन्स (घटकुड़ी) के मजदूर हाथ में थाली – कटोरा लिए आपके बीच भीख माँगने को मजबूर हुए हैं।
चाईबासा में लोटा लेकर आने वाले रूँगटा आज देश का धनी व्यक्ति हो गए लेकिन चाईबासा शहर के लिए सिर्फ घण्टा घर, अफसरों को लिफाफा और अपने मजदूरों को फटेहाली के अलावा कुछ नहीं दिया।
C.S.R. फण्ड का लाभ नहीं मिलने के कारण यहाँ के आदिवासी लकड़ी दातुन बेचने को मजबूर हैं। क्या आदिवासी गरीबी में ही अपना दम तोड़े? आज हेमंत सरकार में भी एक भी “हो” आदिवासी को मंत्री नहीं बनाना जबकि पहली बार जीते मिथिलेश ठाकुर को मंत्री पद देने आदिवासियों के साथ सौतेला व्यवहार करने का उदाहरण है
जबकि मिथिलेश ठाकुर से ज्यादा दीपक बिरुआ जैसे विधायक ज्यादा पढ़े – लिखे और झारखंड आन्दोलन से भी जुड़े हुए व्यक्ति हैं।
कोल्हान के “हो” आदिवासियों को राजनीतिक और आर्थिक दोनों रूप से हाशिए पर रखे जाते रहे हैं।
जॉन मिरन मुण्डा इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा की जबतक कोल्हान में भूख और गरीबी खत्म नहीं होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
इसलिए रूंगटा प्रबन्धन को लेकर मजदूरों का हक अधिकार की लड़ाई यहां की जनता का विकास करने में बहुत बड़ा योगदान साबित होगा।