झोला छाप के सहारे ग्रामीण केश बिगड़ने पर सरकारी अस्पताल पर छोड़ देते है।
चंदवा संवाददाता मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट
चंदवा। चंदवा प्रखंड अंतर्गत ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था आज झोलाछाप प्रैक्टिसनर पर निर्भर है। झोलाछाप प्रैक्टिसनर आज निर्भीक होकर ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज कर रहे हैं, और दवा भी प्रचूर मात्रा में रख रहे है इसे देखने वाला कोई नहीं है। इलाज के साथ-साथ मेडिकल हॉल भी चला रहे हैं। लातेहार जिले के में गैर डिग्री धारी अंग्रेजी दवाओं का बिक्री कर रहे हैं। झोलाछाप प्रैक्टिसनर के पास कोई डिग्री है नही है। इसे देखने वाला भी कोई नहीं है । जब मीडिया कर्मी एक ग्रामीण झोलाछाप चिकित्सक के पास पहुंचे तो उन्होंने बताया कि हम लगभग ढाई साल से ग्राम में सेवा दे रहे हैं, किसी भी प्रकार का आज तक कोई दिक्कत नहीं हुआ है। हम जहां से भी सीखे हैं, जहां से भी डिग्री लिए हैं, हम आपको नहीं बता सकते हैं, आप हम से पूछने वाला कोई नहीं होते हैं। अगर अधिकारी आते और पूछते तो हम उसका जवाब देते हैं, अधिकारियों को हमारे बारे में पता है। ग्रामीण चिकित्सक के द्वारा इस तरह मीडिया को किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं देना यह दर्शाता है कि जिले के स्वास्थ्य विभाग के महकमा के मिलीभगत से सारा काम हो रहा है । इस संबंध में जब मीडिया कर्मी ने प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी चंदवा से फोन कर जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि हमने डांट फटकार की थी समय कम रहने के कारण हम ज्यादा कुछ नहीं देख पाए थे। एक मरीज को वहां से लाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ब्लड भी चढ़ाया और इलाज कर पुनः उसे छोड़ दिया गया । पुनः जाकर के निरीक्षण करेंगे। दुर्भाग्य की बात है, कि लातेहार जिले में सरकारी चिकित्सकों की संख्या, डिग्री धारी चिकित्सकों की संख्या काफी कम है। इसके विपरीत अगर अधिकारी सही से पड़ताल करें तो झोलाछाप चिकित्सकों की संख्या ज्यादा होगी । जिसके कारण ग्रामीण जनता अज्ञानता में अपनी जान भी गवा देते हैं । अगर हम सरकारी चिकित्सक की बात करें तो समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चंदवा में वर्तमान में तीन चिकित्सक पदस्थापित हैं, जबकि लातेहार जिले की बात करें तो 132 चिकित्सक के स्थान पर लगभग 25 से 30 चिकित्सक ही कार्यरत हैं, जो यह दर्शाता है, कि जिले में डिग्रीधारी चिकित्सकों की घोर कमी है। इसी का फायदा झोलाछाप प्रैक्टिसनर उठा रहे हैं। ग्रामीण भी मजबूरी में झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवाने के लिए विवश है, ग्रामीण सरकारी अस्पताल तक पहुच भी नही पाते है। और झोलाछाप प्रैक्टिसनर पूरा माला माल हो रहे है। और कुछ झोलाछाप प्रैक्टिसनर अस्पताल भी खोल कर चला रहे है। और पूरे जिले में कोई भी गैर सरकारी अस्पताल अपना लाइसेंस नही लिया है। और जो पहले लिए थे। उन सभी अस्पताल का लाइसेंस रिनिवल नही कराया है। गुप्त सूचना है। लाइसेंस रिनिवल कराने पर जिला के अस्पताल में क्लर्क के द्वारा मोटी रकम मांगी जाती है। जिससे रिनिवल लाइसेंस अभी तक नही हो पाया है। इस तरह से माननीय मंत्री बन्ना गुप्ता से पूछना चाहता हु। कि गैर सरकारी अस्पताल में लाइसेंस रिनिवल करने में कितनी रकम लगती है।