*घटना के 6 महीने बाद लातेहार कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया आदिवासी अनिल सिंह की थाने में बेरहमी से पिटाई के दोषियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का*
23 फ़रवरी 2022 को लातेहार ज़िला के गारू थाना प्रभारी व अन्य दो पुलिस द्वारा थाने में आदिवासी अनिल सिंह (कुकू ग्राम, बरवाडीह प्रखंड, लातेहार, झारखंड) की बेरहमी से पिटाई की गई थी और तीन दिनों तक गैरकानूनी तरीके से थाने में रखा गया. 22 अगस्त 2022 को स्थानीय कोर्ट ने SC-ST थाना को आदेश दिया कि CrPc की धारा 156 (3) के तहत दोषियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की जाए (आदेश संलग्न).
23 फ़रवारी की आधी रात को गारू पुलिस अनिल को उसके घर से उठा के थाना ले गए थे एवं थाना प्रभारी व अन्य दो पुलिस ने लाठी से बेरहमी से पिटाई की थी. पुलिस उन पर नक्सलियों को मदद करने का आरोप लगा रही थी. न केवल बेरहमी से पिटाई, बल्कि पिटाई के बाद थाना प्रभारी ने अनिल के कपड़ों के ऊपर से पीछे से पैखाने के रास्ते पेट्रोल डाल दिया था.साथ ही, जाति सूचक गाली भी दिया गया था. अगले दिन पुलिस ने उससे ज़बरदस्ती उसकी खून से लतपथ पैंट और अंडरवियर खोलवा के रख लिया. 24 फ़रवरी को उन्हें पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत भी किया गया था लेकिन मामला सार्वजानिक होने के बाद अधीक्षक ने मामले की जानकारी से साफ़ इनकार कर दिया था.
थाना प्रभारी व अन्य दोषी पुलिस के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाने अनिल सिंह 2 मार्च 2022 को अपने स्थानीय थाना (छिपादोहर) गए थे लेकिन उनका आवेदन पुलिस ने नहीं लिया. फिर 4 मार्च को अनिल ने SC-ST थाना में आवेदन दिया और SP को भी शिकायत किया. इस दौरान अनिल पर स्थानीय पुलिस द्वारा लगातार मामला वापिस लेने के लिए और प्राथमिकी न दर्ज करवाने के विषय में विभिन्न प्रकार से दबाव दिया गया. प्राथमिकी दर्ज न होने के कारण 25 मार्च को अनिल सिंह ने स्थानीय न्यायालय में एक कंप्लेंट केस दायर किया और प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी.
गौर करें कि झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा इस मामले को उठाने के बाद मुख्यमंत्री ने हिंसा का संज्ञान लिया था और झारखंड पुलिस को कार्यवाई का आदेश दिया था। लेकिन इसके बावजूद पुलिस लगातार दोषियों को बचाने की कोशिश कर रही है. महासभा मांग करता है कि कोर्ट के आदेश अनुसार तुरंत दोषियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की जाए एवं न्यायसंगत कार्यवाई की जाए एवं अनिल को पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए.
यह मामला फिर से राज्य के पुलिस व्यवस्था की जन विरोधी रवैया को उजागर करता है. राज्य सरकार सुनिश्चित करे कि किसी भी आदिवासी-दलित-वंचित के आवेदन पर पुलिस द्वारा अविलम्ब प्राथमिकी दर्ज की जाएगी और दोषियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाई की जाएगी. यह भी सुचिश्चित की जाए कि नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों व पुलिस द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए.