जालिम और मजलुम की दास्तां है कर्बला : अयुब खान
मुहर्रम का चांद दिखा, 17 को कर्बला में सप्तवीं, 20 को मुहर्रम का पहलाम।
चंदवा। मुहर्रम का चांद दिखाई दिया, 17 को कर्बला में सप्तवीं और 20 को मुहर्रम का पहलाम है, इस्लामी कैलेंडर का नया साल आज से शुरु हो गया है, इस आशय की जानकारी चतरा लोकसभा छेत्र से प्रत्याशी रहे सह सामाजिक कार्यकर्ता अयुब खान ने एक प्रेस वक्तव्य जारी कर दी है, कहा कि इस्लामिक नया साल मुहर्रम माह की पहली तारीख 11 अगस्त से शुरू हो चुका है, मुहर्रम की दसवीं तारीख को दुनिया भर के मुस्लिमों के लिए गम लेकर आती है, मुहर्रम (हिजरी) का महीना इस्लामी इतिहास के ऐसे हिस्से की याद ताजा कर देता है जो पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए मातम की वजह होता है, मुहर्रम की दसवीं तारीख यही वो महीना और दिन है जब इस्लाम के प्रवर्तक पैगंबर मोहम्मद के नवासे (नाती) हजरत इमाम हसन और हुसैन ने अपने परिवार और 72 साथियों के साथ मजहब – ए – इस्लाम को बचाने, हक और इंसाफ कोे जिंदा रखने के लिए कर्बला की जंग में जालिम शासक यजीद के हाथों शहीद हो गए थे, ये एक ऐसी जंग थी जिसमें यजीद की हजारों की सेना के सामने हारना तय तो था लेकिन इसके बाद भी हजरत इमाम हुसैन ने घुटने नहीं टेके, और वह इस्लाम, अच्छाई व इंसानियत के लिए शहीद हो गए. मुहर्रम के महीने को पैगम्बर मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत की वजह से याद किया जाता है, इसी दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को इराक के कर्बला के मैदान में उस वक्त के शासक यजीद के फौजियों ने शहीद कर दिया था, उन्हीं के गम में लोग मुहर्रम मनाते हैं, मुहर्रम पर पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद ताजा हो जाती है, किसी शायर ने खूब ही कहा है कि इस्लाम जिंदा होता है हर करबला के बाद,
करबला की जंग में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हर धर्म के लोगों के लिए मिसाल है, यह जंग बताती है कि जुल्म के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए, चाहे इसके लिए सिर ही क्यों न कट जाए, लेकिन सच्चाई के लिए बड़े से बड़े जालिम शासक के सामने भी खड़ा हो जाना चाहिए, कर्बला के इतिहास को पढ़ने के बाद मालूम होता है की मुहर्रम का महीना कुर्बानी, गमखारी और भाईचारगी का महीना है, क्योंकि हजरत इमाम हुसैन ने अपनी कुर्बानी देकर पुरी इंसानियत को सच्चाई पर चलने का पैगाम दिया है, कर्बला की जंग ऐसी थी कि इमाम हसन हुसैन के परिवार जो पानी के लिए तरस रहे बच्चों पर भी जालिम शासक यजीद की सेना ने तीर बरसाए थे, जालिम और मजलुम की दास्तां है कर्बला।