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गारू के सरयू मे बना शहीद नीलांबर पितांबर प्रतिमा उपेक्षित

नीलाम्बर पीताम्बर शहीद दिवस पर(28 मार्च) पर विशेष

गारू:- जिले के नव निर्मित प्रखंड सरयू मे बना शहीद नीलांबर पीतांबर की प्रतिमा उपेक्षा का शिकार इसकी सूधी लेने वाला कोई नही। जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र मे माओवादी का जबरदस्त सक्रियता थी उसी समय शहीद नीलांबर पीतांबर की प्रतिमा का निर्माण कराया गया था। उस दौरान शहीद दिवस पर एक सप्ताह तक कार्यक्रम आयोजित किया जाता था। कार्यक्रम के कर्ताधर्ता बढ़ चढ़ कर कार्यक्रम के नाम बड़े पैमाने चंदा करते थे, एवं कार्यक्रम आयोजित होते थे। परन्तु आज सरयू मे बने शहीद प्रतिमा की सुध लेने वाला व्यक्ति नही है। शहीद दोनो प्रतिमा धुल फांक रही है मालूम हो कि इस शहीद नीलांबर पीतांबर प्रतिमा का निर्माण बर्ष 2009 मे किया गया था। उस समय इस क्षेत्र मे नक्सलियों का जबरदस्त प्रभाव था, मगर इस क्षेत्र से नक्सलियों का बर्चस्व समाप्त होने के बाद शहीद दिवस पर कार्यक्रम भी आयोजित नही हो पाता है।

गारू प्रखंड से खास रिश्ता रहा है नीलाम्बर पीताम्बर का

नीलाम्बर पीताम्बर का जन्मभूमि चेमो सानया नामक गांव है, जो तत्काल गढ़वा जिले के भंडरिया प्रखंड अंतर्गत आता है। चेमो सानया भगौलिक रूप से गारू प्रखंड के बारेसांढ़ पंचायत अंतर्गत वनभूमि पर बसे गांव लाटू से महज कुछ दुरी पर ही स्थित है। इसके कारण लाजमी है कि, आजकल के पलामू व्याघ्र आरक्षित वन पर वे लोगों का आवागमन होगा ही। नीलाम्बर पीताम्बर खरवार जाति के भोक्ता गौत्र से वास्ता रखते थे और बताते चलें कि, गारू प्रखंड में जनसंख्या को जाति आधारित देखा जाय तो सर्वाधिक लगभग 50 फिसदी लोग खरवार जाति से ही हैं।

स्वतंत्र भारत की आजादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान रहा है

स्वतंत्र भारत में अगर जंग-ए-आजादी की चर्चा हाे या फिर देश में स्वतंत्रता संबंधित काेई समाराेह, पलामू की धरती पर जन्मे वीर शहीद नीलांबर और पीतांबर की न हो ऐसी बात ही नहीं। शहीद नीलांबर-पीतांबर बड़े पराक्रमी,वीर तथा राष्ट्रभक्त थे। इनके पिता चेमु सिंह बड़े ही जागीरदार थे। इनका बनाव कंपनी सरकार से कभी नहीं था, इसके बावजूद कंपनी सरकार ने इन्हें नाम मात्र के शुल्क पर दाे जागीरें उपलब्ध करवा रखी थीं, ताकि खरवार जाति के पराक्रमी जागीदार काे शांत रखा जा सके।

1857 की क्रांति में पलामू का नेतृत्व किये, खरवार और चेरो को एकत्रित करने में सफल भी हुये

नीलांबर-पीतांबर के नेतृत्व में पूरे पलामू में विद्राेह की ज्वाला धधक रही थी। 1857 की क्रांति में पलामू का नेतृत्व कर अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिये थे। कहा जाता है कि इनका संपर्क रांची के प्रमुख क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाही एवं पांडेय गणपत राय से बना रहता था। जिससे घबराकर कमिश्नर डालटन ने मद्रास इंफेंट्री के 140 सैनिक, रामगढ़ घुड़सवार की छाेटी टुकड़ी तथा पिठाैरिया परगणैत के नेतृत्व में उसके साथ जनवरी 1858 काे पलामू के लिए कूच किया। वह 21 जनवरी काे मनिका पहुंच कर ली ग्राहम से मिला एवं दूसरे दिन पलामू किला से विद्राेह का संचालन कर रहे नीलांबर-पीतांबर पर चढ़ाई कर दी। सैन्य क्षमता अधिक हाेने के कारण नीलांबर-पीतांबर काे पलामू किला छाेड़ना भी पड़ गया। किला छाेड़ने के समय विद्राेही अपना ताेप, गाेला बारूद, घरेलु सामान एवं मवेशी अपने साथ नहीं ले जा सके। डाल्टन काे वहां बाबू कुंवर सिंह की एक चिट्ठी मिली, निलांबर एवं नकलाैत मांझी के नाम लिखे इस पत्र में बाबू कुंवर सिंह ने अविलंब सहयाेग करने की बात लिखी थी। इससे घबरा कर डाल्टन ने कुंवर सिंह से मदद मिलने से पूर्व ही विद्राेहियाें काे कुचल देने की रणनीति भी बनायी।कमिश्नर डाल्टन ने लेस्लीगंज में रुक कर युद्ध की तैयारी किया। उसने युद्ध के लिए गाेला-बारूद जुटाये साथ ही क्षेत्रीय जागीरदाराें काे सैन्य सहायता उपलब्ध कराने का आर्डर दिया। बहुत सारे जागीरदार ने आदेश का पालन किया, परंतु पलामू राजा से संबंध रखनेवाले प्रमुख चेराे जागीरदार भवानी बक्स राय ने नीलांबर-पीतांबर का समर्थन करते हुए डाल्टन का आदेश का विरोध कर दिया। 10 फरवरी काे घाटी के हरिनामाड़ गांव( फिलहाल बरवाडीह प्रखंड) में विद्राेहियाें द्वारा विराेधियाें पर कार्रवाई करने की खबर पर डाल्टन ने एल. ग्राहम काे रामगढ़ सेना एवं देव राजा के सैनिकाें के साथ हरिनामाड़ भेजा।

ग्राहम के पहुंचने से पूर्व ही विद्राेही वहां से निकल चुके थे। फिर भी तीन विद्राेही पकड़े गये, जिनमें दाे विद्राेहियाें काे तत्काल फांसी दी गयी तथा एक विद्राेही काे रास्ता बताने के लिए साथ ले लिया गया। डाल्टन ने विद्राेही बंदी के सहयाेग से 13 फरवरी 1858 काे नीलांबर-पीतांबर के जन्मभूमि चेमो सानया में प्रवेश किया। नीलांबर-पीतांबर का दल काेयल नदी पार करते अंगरेजी सेना काे देख चेमो गांव छाेड़ जंगली टिलहाें(जनश्रुति के अनुसार जो आजकल बुढ़ा पहाड़ के नाम से जाना जाता है)के पीछे छिपकर वार करने लगा। इस वार से रामगढ़ सेना का एक वफादार मारा गया। उसके बावजूद नीलांबर-पीतांबर काे उस क्षेत्र से हटना पड़ा। दूसरी तरफ शाहपुर एवं बघमारा घाटी में डटे विद्राेहियाें से भी अंगरेजी सेना का मुकाबला हुआ, वहां भी विद्राेहियाें काे भारी क्षति उठानी पड़ी। विद्राेहियाें के पास से 1200 मवेशी एवं भारी मात्रा में हथियार अंग्रेजी सेना ने जब्त किये परंतु नीलांबर-पीतांबर बच निकलने में कामयाब रहे। जिससे खिन्न हाेकर डाल्टन ने 12 फरवरी काे चेमो सान्या स्थित नीलांबर-पीतांबर के जन्मगांव में लूट-पाट कर सभी घराें काे जला दिया। इनके संपत्ति, मवेशियाें तथा हथियारों काे जब्त कर लिया और लाटू -कुजरूम से होते होते आजकल के पलामू टाइगर रिज़र्व फॉरेस्ट पार करके लाेहरदगा के तरफ बढ़ गये। जनवरी 1859 में कप्तान नेशन पलामू पहुंचा और ग्राहम के साथ विद्राेह काे दबाना शुरू किया। तब तक ब्रिगेडियर डाेग्लाज भी पलामू के विद्राेहियाें के विरुद्ध मुहिम चला दी, शाहाबाद से आनेवाले विद्राेहियाें काे राेकने का काम कर्नल टर्नर काे साैंपा गया। इस कार्रवाई से पलामू के जागीरदारों ने अंग्रेजो से डर कर नीलांबर-पीतांबर काे सहयाेग देना बंद कर दिया।

28 मार्च 1859 को लेस्लीगंज में दोनों भाइयों को फांसी दे दी गई

अंग्रेज खरवार एवं चेरो के बीच फूट डालने में भी सफल हो गये थे। फलस्वरूप नीलांबर-पीतांबर काे अपना इलाका छाेड़ना पड़ा। चेराे जाति से अलग हुए खरवार-भाेगताओं पर 08 फरवरी से 23 फरवरी तक लगातार हमले किये गये, जिससे इनकी शक्ति धीरे -धीरे समाप्त हो गये। जासूसाें की सूचना पर अंग्रेजी सेना ने पलामू में आंदाेलन के सूत्रधार नीलांबर-पीतांबर काे एक संबंधी के यहां से गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाये ही 28 मार्च 1859 काे लेस्लीगंज में एक पेड़ के निचे फांसी में झूला दिये।

हालांकि पलामू के मुख्यालय मेदिनीनगर में स्थित विश्वविद्यालय का नाम नीलाम्बर पीताम्बर विश्वविद्यालय रखकर, झारखण्ड सरकार नें उनके बलिदान को जिवंत रखने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किये हैं।

गारू से संवाददाता उमेश यादव की रिपोर्ट जिला ब्यूरो बब्लू खान की रिपोर्ट लातेहार से

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