उमेश यादव
गारू:- भगवान बिरसा मुंडा के इस धरती में आदिवासियों को क्या मिला क्या नहीं चर्चा का विषय है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ कुजरूम और लाटू गांव का। जाहिर है मार्च अकाउंट में फण्ड लैप्स न हो जाय इसके लिए वन विभाग कई दलालों को कन्वेन्स करने के लिए कुजरूम भेज रहे होंगे। ये सवाल खड़ी होती है की, आंदोलन करने के लिए किसकी वाहन के द्वारा रांची ले जाया जाता है? यहाँ वन विभाग लोगों को बरगलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। हाल ही में उपायुक्त से मिलवाने भी वन विभाग ही अपनी गाड़ी से ले गया था। हालांकि आदिवासी संरक्षक समूह,जन संघर्ष समिति नें भी लोगों को समझाने की कोशिश किये लेकिन जहाँ शिक्षा जैसी समाज के लिए अनमोल चीज नहीं हो वहां चंद लोगों चंद पैसे की लालच में सबकुछ छीन सकते हैं। गांव वालों की बातों पर अध्ययन करने के बाद पता चला की इसमें भी दो मत है कई लोग संतुष्ट हैं तो कई असंतुष्ट। अगर विस्थापन और पुनर्वास सरकारी तरीके से बगैर दबाव के हो तो समझ में आता है, लेकिन वन विभाग के वरीय अधिकारीयों के संरक्षण में दलाल पलते हो तो यहाँ नियम कानून की बात बनती ही नहीं।
बारेसांढ़ पंचायत का अभिन्न अंग होंगे अलग, जहाँ बसती थी जान
विस्थापन की अटकलें अब लगभग समापन के कगार में है। और हो भी क्यों न?
कौन अपने बच्चे को देश दुनिया से पीछे रखना चाहेगा?
जिस स्थान पर शिक्षा और आवागमन जैसे सुविधा प्रदान न हो किसे पसंद आएगी?
फिलहाल तो बस यही है कि हम उनके अच्छे भविष्य की शुभकामनायें देते हैं।