नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के दोषी पति की अपील पर किसी भी प्रकार की उदारता दिखाने से इनकार कर दिया है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने दोषी पति की इस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि पत्नी के चाय बनाने से इनकार करने पर वो आपा खो बैठा और गुस्से में उसकी हत्या कर दी थी। मामला साल 2013 का है और पति संतोष को 10 साल की सजा सुनाई गई थी। इस पूरी घटना को इस जोड़े की छह साल की बेटी ने अपनी आंखों से देखा था और गवाही भी दी थी। कोर्ट ने दलील खारीज करते हुए कहा कि पत्नी ‘कोई गुलाम या कोई वस्तु नहीं’ है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे ने इस महीने की शुरुआत में पारित आदेश में कहा कि ‘विवाह समानता पर आधारित साझेदारी है’, लेकिन समाज में पितृसत्ता की अवधारणा अब भी कायम है और अब भी यह समझा जाता है कि महिला पुरुष की सम्पत्ति है, जिसकी वजह से पुरुष यह सोचने लगता है कि महिला उसकी ‘गुलाम’ है।
अदालत ने कहा कि अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने के बाद, उसे अस्पताल ले जाने से पहले सबूत नष्ट करने में कीमती समय बर्बाद हुआ। इसलिए सजा में कोई अनहोनी नहीं हुई और इसलिए अपील खारिज की जाती है।
क्या था पूरा मामला
महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाला 35 साल की संतोष महादेव अटकर पत्नी के साथ अक्सर झगड़ा किया करता था। उसे शक था कि उसकी पत्नी उसे धोखा दे रही है। 19 दिसंबर 2013 को पीडि़ता मनीषा बिना चाय तैयार किए घर से जा रही थी। जिसके कारण दंपति में झगड़ा हो गया। इस बीच संतोष ने गुस्से में आकर अपनी पत्नी के सिर पर हथौड़े से हमला कर दिया। हथौड़े के चोट से मनीषा घायल हो गई, जिसके बाद पति खून के धब्बों को साफ कर उसे अस्पताल ले गया। लेकिन इलाज के दौरान 25 दिसंबर को मनीषा ने दम तोड़ दिया।