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भाजपा ने बिरसानगर मामले की उच्चस्तरीय जाँच की मांग की, कहा सांसद का हुआ अपमान

जमशेदपुर। भाजपा जमशेदपुर महानगर प्रवक्ता प्रेम झा ने बिरसानगर जोन नंबर 6 में सरकारी योजनाओं के उद्घाटन के अवसर पर जमशेदपुर सांसद विद्युत वरण महतो के उपस्थित होने के बाद कार्यक्रम स्थगित करने को गहरी साजिश बताया है। रविवार शाम जारी प्रेस-विज्ञप्ति में प्रेम झा ने कहा कि राष्ट्रीय पार्टी के सांसद का कार्यक्रम स्थल से वापस भेजना जनभावना व जनादेश का अपमान है जिसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विकास योजनाओं में भाजपा कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी हमेशा रही है, जब भी विकास योजनाओं के शिलान्यास, उद्घाटन कार्यक्रम में भाजपा के सांसद अथवा विधायक जाते हैं, उस समय भाजपा कार्यकर्ता मौजूद रहते हैं। प्रेम झा ने कहा कि दूसरों पर आरोप लगाने वाले बताएं कि क्या वे वहाँ उद्घाटन करने अकेले गए थे? क्या उनके दल के समर्थक कार्यक्रम स्थल पर नहीं थे? प्रेम झा ने विधायक सरयू राय द्वारा शहाबुद्दीन का जिक्र करने पर कहा कि मोहम्मद शहाबुदीन बिहार में राजद के नेता थे और 2019 के विधानसभा चुनाव में उनका समर्थन करने वाले लालू यादव के जंगल राज के प्रमुख सूत्रधार थे। विधायक सरयु राय ने कुछ दिनों पहले कहा कि भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जी, बिहार में लालू के जंगल राज और शहाबुद्दीन के बारे में कुछ बोलेंगे तो उन्हीं स्थानों पर वो बतायेंगे की झारखंड में भी शाहबुद्दीन जैसे लोग है। इसपर जिला प्रवक्ता प्रेम झा ने कहा कि जिनकी तरफ उनका इशारा था, उनके विकास कार्यों एवं जनकल्याणकारी योजनाओं की प्रशंसा विरोधी भी करते हैं। कहा कि उनका मत है कि झारखंड में शहाबुद्दीन जैसे दो लोग है, मात्र 10 महीने में ही जमशेदपुर समेत पूरे झारखंड को जंगलराज एवं अराजक बना देने वाले लोग ही शाहबुद्दीन और जंगलराज के प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि बिहार-झारखंड में एक लोक श्लोक है कि “चलनी दुशे , सूप को ” ये बात पूर्वी विधायक पर पूरी तरह फिट बैठती है। जिनका पूरा जीवन ही दूसरों के ऊपर विषकन्या जैसे व्यक्तिगत आरोप लगा कर चरित्रहरण की रही हो वो दूसरों को ज्ञान नही देते। पूरी दुनिया को आदर्शवाद, विरोध के स्वर को आवाज़ देने जैसी बड़ी-बड़ी बातें करने वाले पर जब बात आती है तो वे बौखला जाते है और उनका सारा ज्ञान गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के एक चौपाई “पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे” में सिमट कर रह जाता है। कहा कि वर्तमान समय में उपदेशक अधिक है, अमलकर्ता नहीं। यदि व्यक्ति स्वयं आदर्शों का पालन करने लग जाए तो उसे उपदेश देने की ज़रूरत नहीं होगी।

 

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