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Bihar election 2020: बिहार चुनाव के दो कॉर्पोरेट चेहरे, एक की ख्वाहिश CM तो दूसरे की डिप्टी CM

बिहार विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नीतीश कुमार , तेजस्वी यादवही नहीं है, कुछ और नाम भी हैं जो मुख्यमंत्री या किंगमेकर बनने का ख्वाब पाले हुए हैं. इनमें से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कॉर्पोरेट स्टाइल में बड़े विज्ञापन , धुआंधार प्रचार और बड़े-बड़े वादे करके बिहार की जनता के बीच बहुत जल्दी पहचान बना लिए हैं. इनमें दो नाम प्रमुख हैं पहला वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश साहनी उर्फ सन आॉफ मल्लाह और प्लूरल्स पार्टी की फाउंडर पुष्पम प्रिया . बिहार विधानसभा चुनावों का रिजल्ट इन दोनों नेताओं की बड़बोलेपन की तहकीकात तो करेगा ही कॉरपोरेट स्टाइल की राजनीति का भी भविष्य तय करेगा.

मुकेश साहनी

कॉरपोरेट स्टाइल में बिहार की राजनीति में आकर छा जाने की शुरुआत करने वाले नेता हैं . खुद को सन आॉफ मल्लाह कहने वाले मुकेश साहनी भी खुद को बिहार के डिप्टी सीएम के रूप अपने को देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि राजद के साथ गठबंधन की शर्त उनकी यही है कि उन्हें सरकार बनने पर डिप्टी सीएम का पद चाहिए . इन्होंने 2013 में बिहार के अखबारों में बड़े विज्ञापन के साथ राजनीति की दुनिया में पदार्पण किया. 2015 में बीजेपी के लिए बिहार में प्रचार किया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की हर सभा में ये उनके साथ होते . माना जाता है कि मल्लाह वोटरों में इनकी अच्छी घुसपैठ है. पर 2015 एनडीए की हार के बाद भाजपा में इनका महत्व कम हुआ और ये वापस मुंबई चले गए. पर एक साल बाद वापस आ गए. पिछले साल नवंबर में उन्होंने विकासशील इंसान पार्टी (VIP) नाम से अपनी पार्टी का गठन किया. उन्होंने अपने समर्थकों से कहा बिहार में 3 पर्सेंट वाले मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो हम 14 परसेंट वाले क्यों नहीं बन सकते.

प्लस पॉइंट

1- अपनी जाति के समर्थकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. अगर इनके समर्थकों को ये लगता है कि वीआईपी का प्रत्याशी मजबूत स्थित में है तो मुकेश साहनी को कई सीटों पर फायदा हो सकता है. सहयोगी दलों का साथ भी इनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. अगर राजद और पप्पू यादव के समर्थकों का वोट मुकेश साहनी के प्रत्याशियों को मिल जाता है वीआईपी पार्टी की बल्ले हो सकती है.

2-अपने वोटरों को लुभाने का इनका अलग अंदाज काम कर रहा है. वे कभी हेलिकॉप्टर से तो कभी विशेष रथ में सवार होकर पहुंच कर गांव गा्ंव और कस्बे कस्बे घूम रहे हैं . बॉलिवुड में काम करने का अनुभव का इस्तेमाल वो राजनीति के लिए करते रहे हैं. यही कारण है कि बहुत कम समय में ही वो पूरे बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं.

माइनस पॉइंट

1- मुकेश साहनी की राजनीति अभी केवल एक जाति मल्लाह तक सीमित हो कर रह गई है . अति पिछड़ी जातियों में अलग-अलग लोकल लेवल पर नेता उभर रहे हैं. उनकी पकड़ अपनी जातियों पर ज्यादे है.

2-महागठबंधन से कई पार्टियों के टूटने का नुकसान मुकेश साहनी की पार्टी को भी होगा. उपेंद्र कुशवाहा के अलग होने से गठबंधन कमजोर हुआ है. कांग्रेस भी अगर राह पकड़ लेती है तो निश्चित रू से पार्टी कमजोर होगी. दूसरे वीआईपी पार्टी के प्रत्याशियों को राजद के वोटर्स और पप्पू यादव के वोटर्स कितना सपोर्ट करते हैं इस पर निर्भर करेगा कि मुकेश साहनी को कितनी सीटों पर सफलता मिलती है.

पुष्पम प्रिया

इस साल मार्च के महीने में कॉरपोरेट स्टाइल में बिहार की जनता के बीच अचानक आकर छा जाने वाली पुष्पम प्रिया खुद को बिहार सीएम का पद दावेदार बताती हैं. लंदन से हाईली क्लवालिफाइड पुष्पम प्रिया ने बिहार के सभी अखबारों में विज्ञापन जारी कर के खुद को भविष्य का सीएम बनने के लिए जनता से आशीर्वाद मांगा था. उन्होंने बिहार को अगले दस सालों में विकसित प्रदेश के रूप में बदलने का ब्लू प्रिंट तैयार करने का दावा किया है. उनकी पार्टी प्लूरल्स का अभी रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका है पर उनके धुआंधार दौरे जारी हैं. सोशल मीडिया पर उनकी फैन फालोइंग लगातार बढ़ती जा रही है. सैकड़ों की संख्या में उनके फैन्स पेज बन चुके हैं. बिहार को अलग किस्म की पार्टी देने के लिए प्रत्याशियों का चयन बहुत जांच परख कर कर रही हैं. पार्टी की वेबसाइट के अनुसार, पुष्पम ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री ली है. वे इंग्लैंड के द इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज विश्वविद्यालय से डेवलपमेंट स्टडीज में भी मास्टर्स हैं. इनके पिता जेडी यू के नेता विनोद चौधरी हैं जो विधान परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं.

प्लस पॉइंट

1- बिहार के यूथ ही नहीं आम जनता के बीच अपनी स्टाइल से पॉपुलर हो रही हैं। वे जनता से सीधे कनेक्ट होने का हुनर जानती हैं। वे प्रदेश के सबसे पिछड़े एरिया का दौरा कर रही हैं. बंद पड़े कारखानों में जा रही हैं और वहां बेरोजगार हुए लोगों से मिल रही हैं.

2- बिहार के लोकल मीडिया और न्यूज पोर्टलों में कैसे छपा जाए उन्हें भली भांती पता है। कुछ महीने पहले ही आकर बिहार के मीडिया में जगह बना लेना भी इनके टैलेंट का ही हिस्सा है। बिहार के अखबारों और न्यूज पोर्टलों में इनके बारे में छपने वाली खबरों की हेडिंग से इनकी लोकप्रियता का पता लग रहा है। कुछ हेडलाइन देखिए.. क्यों काले कपड़े पहनती हैं पुष्पम प्रिया.., मास्क से लेकर चप्पल तक सब मैचिंग, चर्चा में पुष्पम का ये लुक, हरकत में आ रहीं पुष्पम प्रिया, कर रही क्रांति का दावा, युवाओं को नौकरी देना है पुष्पम प्रिया का प्राइम टार्गेट।

माइनस पॉइंट

1-बहुत कम समय इन्हें मिला है बिहार की जनता के बीच घूमने का . मार्च में आने के बाद लॉकडाउन और फिर तुरंत चुनाव का ऐलान . इतने कम समय में बिहार की 243 सीटों का गणित समझना और सीट जीतना आसान नहीं है.

2- किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं है. बिहार में तो बीजेपी , जेडीयू और राजद को भी सहयोगी दलों की दरकार है. प्लूरल्स पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ रही है , इसका उल्टा असर भी मतदाताओं पर पड़ सकता है. वोटर्स ये समझ सकते हैं इस पार्टी को वोट देने से वोट का महत्व नहीं रहेगा.

सूत्रों के अनुसार

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