संसद में उठा झारखंड में आदिवासियों के धर्मांतरण का मुद्दा, रांची के सांसद संजय सेठ को मिला कई दलों का समर्थन

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Sanjay seth
रायसीना हिल्स की सड़कों पर साइकिलिंग कर रहे हैं रांची के सांसद संजय सेठ.

रांची/नयी दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के सांसद संजय सेठ ने लोकसभा में मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को झारखंड में आदिवासी समुदाय के धर्मांतरण का मुद्दा उठाया. सोमवार को लोकसभा में कई दलों ने उनका समर्थन किया और खुद को इस मुद्दे से संबद्ध किया.

श्री सेठ ने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक चर्चा करके स्वतंत्र इकाई से पूरे प्रकरण की जांच करवाने, आदिवासी हितों, उनकी परंपराओं, उनकी संस्कृति की रक्षा करने की मांग की.

रांची लोकसभा क्षेत्र के सांसद श्री सेठ ने कहा कि झारखंड में आदिवासी समुदाय के धर्मांतरण के मामले बढ़ने की जानकारी सामने आ रही है. उन्होंने कहा, ‘ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों को फंसाया जा रहा है. मामले की जांच होनी चाहिए.’ उन्होंने कहा कि झारखंड जैसे राज्य में ईसाइयों का बढ़ता प्रभाव ना सिर्फ आदिवासियों को उनके परंपराओं, धर्म-कर्म से तोड़ने का काम कर रहा है, बल्कि समाज के लिए भी बड़ा खतरा उत्पन्न कर रहा है.

श्री सेठ ने कहा कि झारखंड में आदिवासी समुदाय का धर्मांतरण बहुत बड़ा मुद्दा है. जब-जब गैर-भाजपा की सरकार राज्य में बनी है, धर्मांतरण तेजी से बढ़ा है. उन्होंने कहा कि झारखंड में नयी सरकार बनने के बाद से ही कई क्षेत्रों से धर्मांतरण बढ़ने, लोभ-लालच देने जैसे मामले सामने आने लगे हैं. चर्चों का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. सिमडेगा जैसे छोटे से जिले में 2,400 से अधिक चर्च हैं. इनमें 300 से अधिक चर्च सिर्फ सिमडेगा शहर में है.

श्री सेठ ने कहा कि यह बताने के लिए पर्याप्त है कि किस कदर धर्मांतरण का प्रभाव झारखंड में बढ़ रहा है. उन्होंने मिशनरियों की संस्था निर्मल हृदय के द्वारा बच्चों की खरीद-फरोख्त का भी हवाला दिया. कहा कि वर्ष 2018 में अचानक से इसमें बड़ा खुलासा हुआ और सैकड़ों नवजात की खरीद-बिक्री का खुलासा हुआ. गोद देने के नाम पर बच्चों की खरीद-बिक्री होती थी. अविवाहित लड़कियां मां बनती थीं. इनमें ज्यादातर आदिवासी समुदाय की होती थीं.

उन्होंने कहा कि इस मामले में मुकदमा हुआ, कई गिरफ्तारियां हुईं और तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसकी जांच के निर्देश दिये. नयी सरकार के गठन के साथ ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इतना ही नहीं, धर्मांतरण और चर्च का बढ़ता प्रभाव आदिवासियों को कई रूपों में विखंडित कर रहा है. निर्मल हृदय का एक मामला सामने आया, निष्पक्षता से इसकी जांच हो, तो ऐसे कई बड़े मामलों का खुलासा हो सकता है.

लॉकडाउन में धर्मांतरण की शर्त पर दी गरीबों को मदद

संजय सेठ ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब पूरे देश में लोग सेवा भाव से काम कर रहे थे, सिमडेगा, गुमला, लातेहार, गिरिडीह, रांची, खूंटी सहित कई जिलों में मिशनरियों ने राहत सामग्री तो दी, लेकिन बदले में धर्मांतरण की भी शर्त रखी. उन्होंने कहा कि कई बार ऐसे मामले सामने नहीं आ पाते. अभी तो सरकार भी गैर-भाजपाई है, तो निस्संदेह और नि:संकोच होकर मिशनरियां अपना काम कर रही हैं.

श्री सेठ ने कहा कि झारखंड में जब भी आदिवासी हित की बात आती है, पास्टर और पादरी आदिवासियों को भड़काते हैं. कई बार आदिवासियों के हित में यह आंदोलन भी चलाते हैं. सोचनीय है कि जब यह अपने आप को आदिवासी मानते ही नहीं, इन्होंने ईसाई स्वीकार कर लिया, तो फिर किस हक से यह आदिवासियों को भड़काते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई मिशनरियां धर्मांतरण तो करवा रही हैं, परंतु किसी के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा. कुल मिलाकर मिशनरियां एक तीर से कई शिकार कर रही हैं.

आदिवासियों को उनकी जड़ों से काट रही मिशनरियां

श्री सेठ ने कहा कि हिंदुओं और आदिवासियों को उनके धर्म के खिलाफ भड़काकर उनका धर्मांतरण कर रही है और फिर अपने यहां उनसे दोयम दर्जे का व्यवहार करती है. यह बात मिशनरियों से जुड़े बड़े अधिकारी आरएल फ्रांसिस ने तीन साल पहले लेख में कही थी. फ्रांसिस ने कहा है कि ईसाई मिशनरियां धर्मांतरण की आड़ में विस्तारवादी नीति पर काम कर रही हैं. यही वजह है कि वे भोले-भाले आदिवासियों को बरगला रहे हैं और उन्हें उनकी जड़ों से काट रहे हैं. आदिवासी अपनी सांस्कृतिक पहचान खो रहे हैं और शोषण का शिकार हो रहे हैं.

सूत्रों के अनुसार