चंदवा के देवनद घाटऔर भुषाड़ घाट सज धज कर तैयार
*पहला अर्घ्य आज, अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना कर सुख-समृद्धि की कामना करेंगी व्रती*
मुकेश सिंह की रिपोर्ट चंदवा
चंदवा। चंदवा के दोनों छोर स्थित देवनद घाट और भुषाड़ घाट सज धज को तैयार पहला अर्घ्य आज, अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना कर सुख-समृद्धि की कामना करेंगी व्रती
चार दिवसीय महापर्व छठ का पहला अर्घ्य कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को दिया जाता है. इस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर को है. पष्ठी तिथि को सूर्यास्त 05 बजकर 34 मिनट में होगा. व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम में किसी तालाब, नदी या जलकुंभ में जाकर सूर्य की उपासना करती हैं और डूबते हुए सूर्य के अंतिम किरण को दूध और पानी से अर्घ्य देती है।
पहले अर्घ्य के दिन सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं
बता दें कि केवल छठ महापर्व में ही अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की उपासना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए छठ के पहले अर्घ्य के दिन प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से लाभ की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्याताओं के अनुसार, अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन की सभी परेशानी दूर होती हैं और जीवन में संपन्नता आती है. सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करना चाहिए. इसमें दूध और गंगा जल मिश्रित करके सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाता है।
अर्घ्य छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है. इस दिन सूर्योदय के समय उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल दूसरे और अंतिम अर्घ्य 31 अक्टूबर को दिया जायेगा. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 27 मिनट पर होगा. उदियमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण कर निर्जला उपवास तोड़ती हैं. जिसके बाद छठ महापर्व का समापन हो जाता है. परंपरा के अनुसार, छठ के दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देकर धन, धान्य और आरोग्य की कामना की जाती है
चार दिवसीय महापर्व छठ का पहला अर्घ्य कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को दिया जाता है. इस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर को है. पष्ठी तिथि को सूर्यास्त 05 बजकर 34 मिनट में होगा. व्रती दिन भर निर्जला व्रत रखकर शाम में किसी तालाब, नदी या जलकुंभ में जाकर सूर्य की उपासना करती हैं और डूबते हुए सूर्य के अंतिम किरण को दूध और पानी से अर्घ्य देती है.
पहले अर्घ्य के दिन सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं
बता दें कि केवल छठ महापर्व में ही अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की उपासना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए छठ के पहले अर्घ्य के दिन प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से लाभ की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्याताओं के अनुसार, अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन की सभी परेशानी दूर होती हैं और जीवन में संपन्नता आती है. सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करना चाहिए. इसमें दूध और गंगा जल मिश्रित करके सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए.
दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य
छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है. इस दिन सूर्योदय के समय उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल दूसरे और अंतिम अर्घ्य 31 अक्टूबर को दिया जायेगा. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 27 मिनट पर होगा. उदियमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण कर निर्जला उपवास तोड़ती हैं. जिसके बाद छठ महापर्व का समापन हो जाता है. परंपरा के अनुसार, छठ के दूसरे दिन सूर्य की पहली किरण को अर्घ्य देकर धन, धान्य और आरोग्य की कामना की जाती है.