*टाना भगत का संविधान की “पांचवी अनुसूची” का हवाला देते हुए पंचायत चुनाव का विरोध*
*कई आर्टिकल पढ़ने के बाद उमेश यादव की कलम से*
संविधान की “पांचवी अनुसूची” भारत की अनुसूचित जनजातियों के लिये किसी धार्मिक ग्रन्थ से कम नहीं है। क्योंकि आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) की सुरक्षा और और तरफदारी इन्हीं कानूनों में निहित थी। पांचवी अनुसूची संविधान की पुस्तक में तो अबतक है पर आजतक ‘अनुसूचित क्षेत्र’ के लोगों ने उसका स्वाद नहीं चखा। आज भी ‘अनुसूचित जनजाति अपने संविधान पर पूर्ण आस्था और श्रद्धा रखती है। लेकिन अब उनका सब्र टूटता नज़र आ रहा है। यही सब कारण रहा है की आज झारखण्ड के लातेहार जिला में टाना भगतों का पंचायत चुनाव के विरुद्ध आंदोलन देखा जा रहा है। झारखण्ड में साहेबगंज, पाकुड़, दुमका, जामताड़ा, लातेहार, रांची, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला को संविधान की “पांचवी अनुसूची” शामिल किया गया है।
*क्या है पाँचवी अनुसूची का सार*
पांचवीं अनुसूची का सार यह है कि इसके तहत आदिवासी संस्कृति, भाषा, जीवनशैली और अधिकारों को राज्यपाल की निगरानी में संवैधानिक संरक्षण दिया गया है। पांचवीं अनुसूची से ही संबद्ध कर पेसा कानून 1996 का प्रावधान किया गया, जिसमें रूढ़ि-प्रथा एवं ग्रामसभा को परिभाषित किया गया। इसके द्वारा संसद, विधानसभा और नौकरशाही के सीधे हस्तक्षेप को नियंत्रित किया गया। यह ऐसी व्यवस्था है, जो अनुसूचित क्षेत्र के राज्यों को दूसरे राज्यों से अलग और विशिष्ट बनाती है।
संस्कृति, परम्पराओं एवं जल, जंगल और ज़मीन पर आधारित जनजातीय अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये यह कानून ज़रूरी भी था। इस कानून में सिर्फ इतना ही नहीं वरन आदिवासियों की विशिष्ट सामाजिक एवं पारम्परिक व्यवस्था की रक्षा के लिये सशक्त जनजातीय प्रशासनिक तंत्र को भी मान्यता दी गई थी। लेकिन इसे दुर्भाग्य कहें या प्रशासनिक लापरवाही, कि आज तक आदिवासियों के हित में बने संविधान के इस प्रावधान को लागू नहीं किया गया।
*कौन हैं टाना भगत और क्या है इनलोगों का इतिहास*
टाना भगत, यह नाम सुनते हुए आज भले ही दिमाग में अनसुना लगता हो लेकिन भारत की स्वतंत्रता के इतिहास का एक पूरा काल टाना भगत समुदाय को समर्पित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वाधीनता के जिन आंदोलनों के कारण आज पूजनीय हैं, टाना भगत समुदाय ने अहिंसा के उस रास्ते में पहले ही लकीर खींच रखी थी। झारखण्ड आदिवासी क्रांति में बिरसा मुंडा काल के कुछ दशक बीतने के बाद टाना भगत समुदाय का समय शुरू हुआ जिसका संचालक जतरा उरांव थे। धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के बाद आदिवासी जनजाति को संगठित करने वाले वीर जतरा उरांव का नाम तो सुने ही होंगे। यदि नहीं तो आइये कुछ समझते हैं जतरा उरांव (भगत) जन्म वर्तमान गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी गांव में 1888 में हुआ था। टाना भगतों नें वर्ष 1914 से 1919 तक अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया। वह ऐसा धार्मिक आंदोलन था, जिसके राजनीतिक लक्ष्य थे। वह आदिवासी जनता को संगठित करने के लिए नये ‘पंथ’ के निर्माण का आंदोलन था। इस मायने में वह बिरसा आंदोलन का ही विस्तार था।
*टाना भगत के लातेहार आंदोलन का वर्तमान राजनीती में टिप्पणी*
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य और आदिवासी नेता आशुतोष सिंह चेरो का भी मानना है कि अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत चुनाव कराना सही नहीं है। वे किसी भी प्रकार से इसे संवैधानिक मानाने को तैयार नहीं है। पाँचवी अनुसूची ग्राम सभा को विशेष अधिकार प्रदान करता है तथा इसके अनुसार अनुसूची क्षेत्रों में प्रशासनिक बागडोर भी आदिवासियों (अनुसूचित जनजाति) के हाथों में होना चाहिए।