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जकात से गरीबी दूर होती है, समाज मजबूत होता है:-मौलाना अब्दुल वाजिद चतुर्वेदी।

*जकात से गरीबी दूर होती है, समाज मजबूत होता है:-मौलाना अब्दुल वाजिद चतुर्वेदी।*

कौशर अली की रिपोर्ट

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के लातेहार जिला सेक्रेट्री ने रमज़ान के पवित्र माह में ज़कात जैसी फ़राइज़ का हर साहेब-ए-निसाब से अदा करने का आह्वान किया है।उन्होंने कहा कि ज़कात इसलाम का एक अहम और मज़बूत स्तंभ है पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व.का फरमान है कि इसलाम की बुनियाद पाँच बातों पर है उनमें अव्वल अल्लाह के सिवा कोई इबादत के योग्य नहीं और महम्मद स. अ. व. उसके बन्दे और रसूल(दूत) हैं दुसरा नमाज़ कायम करना तीसरा रमज़ान का रोज़ा रखना चौथा अपने माल की ज़कात निकालना और पांचवां हज करना। ज़कात के बारे में पवित्र कुरान में बार बार आदेश है कि “नमाज़ कायम करो और ज़कात अदा करो” ज़कात हर उस मुसलमान पर जिसके पास 52.5 तोला चाँदी या 7.5 तोला सोना या इन दो में से किसी एक के बराबर नकद रुपये हो जिसपर साल गुज़र गया हो तो उसपर ज़कात फर्ज़ अर्थात अनिवार्य हो जाता है, उस व्यक्ति को अपने माल का 2.5 फीसद गरीबों को दान करना जरूरी है। ज़कात देते समय इस बात का भी ध्यान रखना ज़रुरी है कि पहले अपने गरीब रिश्तेदारों पड़ोसियों और अपने बस्ती के लोगों को दिया जाए। इसलाम समस्त लोगों का कल्याण चाहता है, इसलिए अपने मानने वालों को ये आदेश देता है कि जो माल दौलत तुमने कमाया है उसमें तुम्हारे अलावा गरीबों का भी हक़ है। इसलिए तूम्हें गरीबों का ख्याल रखना चाहिए समाज के गरीब और फकीरों को अपने ज़कात के पैसे का मालिक बना कर उसको आगे बढ़ने में सहायता करो ताकि समाज़ से गरीबी दूर हो। ईश्वर के अंतिम पैगम्बर मुहम्मद स.व. ने फरमाया जो व्यक्ति अपने माल की ज़कात निकाल देता है उसके माल से बूराई समाप्त हो जाती है

ज़कात देने का आदेश तो अल्लाह का है और हर मुसलमान ईश्वर का आदेश मानकर ज़कात निकालता है, मगर दुनियाँ में इसके सकारात्मक परिणाम भी हैं जिससे समाज को आगे बढ़ने में बल मिलता है ज़कात के माध्यम से पैसे एक हाथ में न रह कर गर्दिश करता है जिस से वित्तीय व्यवस्था मज़बूत होता है समाज़ से गरीबी दूर होती है मालदार के दिल से लालच और धनमोह समाप्त होती है। समाजिक सोहार्द और एक दुसरे के प्रति प्रेम भाव के बढ़ने का सबब है

समाज सदृढ़ और मजबूत होता है। चोरी, डकैती और सूद,ब्याज और रिश्वत जैसी समाजी बुराईयां धीरे धीरे समाप्त हो जाती हैं।

आईये हम अपने रब की इस आदेश का पालन करते हुए अपने समाज से गुरबत मिटाने की दिशा में कदम बढ़ाएं रमज़ान के इस पावन अवसर पर देश और समाज को मज़बूत करें।

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