बुनियादी सुविधाओं से महरुम है आदिम जनजातियों का हेठडीह गांव, सड़क, पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव, रोजगार की तलाश में करते हैं पलायन
संवाददाता उमेश यादव/गारू
लातेहार : यह कहानी गारू प्रखंड के बारेसांढ़-मायापुर पंचायत की सीमा पर स्थित हेठडीह गांव की है। बदलते समय में शहर और शहर के पास के गांवों का विकास जरूर हुआ है। लेकिन आज भी दूर-दराज के गांवों में लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी गांव के लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं और कुछ पहुंच भी जाती हैं तो बिचौलियों का शिकार हो जाती हैं।
चुनाव के दौरान और किसी भी बड़े कार्यक्रम में अधिकारी, राजनेता गांव के अंतिम व्यक्ति को लाभ देने की बात करते सुने जाते हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर विकास की हकीकत कुछ और ही बयां करती है। गारू प्रखंड मुख्यालय से मात्र 22 किमी की दूरी पर स्थित हेठडीह गांव, शत-प्रतिशत आदिम जनजाति बिरजिया समुदाय के लगभग 30 परिवार निवास करते हैं।
बिचौलियों की भेंट चढ़ जाती हैं योजनाएं
घने जंगल और दो टेटुक नदी और बूढ़ा नदी के बीच बसे इस गांव में पानी, बिजली, शौचालय, शिक्षा, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। कुछ लोगों को सरकार की कल्याणकारी योजना के नाम पर विधवा और वृद्धावस्था पेंशन मिलती है। मनरेगा योजना के नाम पर यहां तो योजना आती है, लेकिन बिचौलियों के दबदबे के कारण यह धरातल पर नहीं उतर पा रही है।
पेयजल के लिए नदी-नालों पर निर्भर
इस गांव के लोगों के संघर्ष की कहानी उनकी दिनचर्या में शामिल है। सुबह उठते ही लोगों को पानी के लिए नदी में जाना पड़ता है। आधे से अधिक लोग मछली पकड़ने के लिए दिनभर बुढ़ा नदी किनारे ही बैठे रहते हैं। यह सिलसिला वर्षों से चलता आ रहा है। मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना से भी गांव के लोग अनभिज्ञ हैं।
वर्षों से अधूरा पड़ा है विद्यालय भवन
गांव में वर्षो पूर्व एक स्कूल का निर्माण शुरू हुआ था लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका। गारू शिक्षा प्रसार पदाधिकारी की लापरवाही के कारण अर्द्धनिर्मित विद्यालय भवन गाय, बकरियों का अड्डा बन चूका है। सरकार द्वारा लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी विद्यालय भवन का अधूरा होना भारतीय शिक्षा व्यवस्था की दूरदर्शिता को प्रमाणित करता है।
आंगनबाड़ी और स्कूल
आंगनबाड़ी केंद्र भी गांव में है। लेकिन उसका भी उपयोग आज तक नहीं हो पाया है। ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालय के एकमात्र शिक्षक राजू लोहरा की मनमानी का प्रतिकूल असर बच्चों के भविष्य पर पड़ता है। क्योंकि कोविड-19 के दौरान एक या दो बार ही विद्यालय में दर्शन दिए हैं। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को अभी तक किताब भी मुहैया नहीं करवाए हैं। नियमित शिक्षा की लचर व्यवस्था के कारण ही बच्चे पांचवी के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं।
ओडीएफ घोषित है गांव लेकिन एक भी शौचालय उपयोग लायक नहीं
स्वच्छ भारत अभियान के तहत ओडीएफ का अभियान चला लेकिन इस गांव में एक भी शौचालय नहीं बना। बावजूद इसके गांव में ओडीएफ का बोर्ड लगा दिया गया है। बताते चलें की गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है लेकिन उसका भी शौचालय उपयोग लायक नहीं है। गांव के लोग खुले में शौच करने को विवश हैं।
घर-घर बिजली का लगा है बोर्ड और ट्रांसफार्मर ले गया विभाग
भारत सरकार के सौभाग्य योजना के अंतर्गत घर-घर विद्युतीकरण का कार्य यहां भी शुरू हुआ था। परंतु 1 महीने उपयोग के बाद विद्युत आपूर्ति को पूरी तरह बंद कर दिया गया। ग्राम प्रधान मरियानुस बिरजिया बताते हैं कि विद्युत विभाग द्वारा आदेश का हवाला देते हुए गांव में लगा ट्रांसफार्मर को बारेसांढ़ ले जाया गया है।
15वें वित्त से गांव में एक भी योजना नहीं मिली, जबकि गांव में सड़क की स्थिति बदहाल
ग्राम प्रधान मरियानुस बिरजिया बताते हैं कि यह टोला दो भाग में विभाजित है 20% घर बारेसांढ़ पंचायत में तथा 80% घर मायापुर पंचायत में पड़ता है। गांव के सडकों की स्थिति बदहाल है। मुखिया को 15वें वित्त द्वारा काम के एवज में पैसा नहीं देने के कारण यहाँ कोई काम नहीं मिला। नतीजतन रोजगार की तलाश में लोग पलायन को मजबूर हैं।