नई दिल्ली। हर दिन बीतने के साथ ही देश में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। कोविड केस की बढ़ती संख्या के चलते इसे भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर कहा जा रहा है। हर दिन लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस का शिकार हो रहे हैं। सरकार ने टीकाकरण को विस्तार देते हुए 45 साल तक की उम्र वालों को इसमें शामिल कर लिया है लेकिन टीके को लेकर कई सारी गलत जानकारियों के चलते अभियान पर असर पड़ रहा है।
कोविड-19 टीकाकरण को लेकर कई भ्रांतियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है ताकि हर कोई टीकाकरण के लिए आगे आ सके। धीमा टीकाकरण न केवल हानिकारक है बल्कि कई दूसरे लोगों को यह खतरे में डालेगा। आइए उन मिथ पर नजर डालते हैं जो कोविड वैक्सीन को लेकर फैले हुए हैं।
मिथक 1- वैक्सीन से होता है कोविड
कई लोग हैं जिन्हें वैक्सीन दी गई उसके बाद भी वह संक्रमित हो गए। इसके चलते वैक्सीन के असर को लेकर शक किया जाने लगा है। हालांकि यह सही नहीं है। एक बात जो यहां समझने की है वह यह कि कोविड वैक्सीन संक्रमण के खिलाफ एक हद तक प्रभावी है लेकिन यह वायरस की गंभीरता और मृत्यु दर को 100 प्रतिशत कम करती है।
वैक्सीन इंफेक्शन की संभावना को भी कम करती है इसलिए इसके बारे में संदेह करने की कोई वजह नहीं है।
डॉक्टर कहते हैं कि यह वैक्सीन दूसरी डोज लेने के 14 दिन बाद ही पूरी तरह प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती है। उसके बाद भी आपको मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जरूरी है। ये तब तक किया जाना चाहिए जब तक कि बड़े स्तर पर लोग निगेटिव न हो जाएं।
मिथक 2- कोविड हो चुका है तो वैक्सीन की जरूरत नहीं
कोविड-19 होने के बाद आपका शरीर इससे लड़ाई लड़ता है और इसके खिलाफ एंटीजेन तैयार करता है। ऐसे में कई लोग जिन्हें कोविड-19 हो चुका है वे समझते हैं उन्हें वैक्सीन की जरूरत नहीं है। ऐसा सोचना ठीक नहीं है। संक्रमण के बाद तैयार प्रतिरोधक क्षमता कितनी प्रभावी है और कब तक रहेगी इस बारे में कोई निश्चित शोध नहीं हुआ है। हमें यह नहीं पता है कि यह कितने दिन तक रहता है और किस तरह से असर करता है। ऐसे में वैक्सीन से इनकार करना भूल होगी।
संक्रमित होने के बाद भी वैक्सीन लेने से पहले से मौजूद प्रतिरक्षा के स्तर में वृद्धि होगी और कोविड के खिलाफ अतिरिक्त सुरक्षा मिलेगी।
मिथक 3- वैक्सीन से ब्लड क्लॉट हो सकता है
डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने दावा किया कि कोविड वैक्सीन लेने के बाद शरीर में रक्त के थक्के बन रहे हैं। इस खबर ने पूरी दुनिया, खासतौर पर बुजुर्गों, को डराया है। लोग इस बात से आशंकित हैं और टीका लेने से बच रहे हैं।
वैक्सीन में साइड-इफेक्ट को ध्यान में रखा गया है लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि टीके बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए सुरक्षित हैं। इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ वैक्सीन से रक्त के थक्का बनने के संभावित साइड इफेक्ट को लेकर निश्चित नहीं है।
इसी तरह पतले रक्त वाले लोगों में भी इसी आशंका के चलते टीकाकरण को लेकर संदेह बना हुआ है। लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन फिर भी ऐसा होता है तो टीका लेने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें।
मिथक 4- डीएनए बदल देगी कोविड वैक्सीन
वैक्सीन से जुड़ा एक मिथक यह है कि कोरोना वायरस का टीका हमारे जेनेटिक कोड यानि डीएनए में छेड़छाड़ कर सकता है। ये अफवाह तब से ही फैलनी शुरू हो गई थी जब वैक्सीन को मंजूरी मिली थी। ये अफवाहें दूसरी वैक्सीन के साथ भी चलती रहती हैं। इसलिए अच्छा होगा कि इन पर ध्यान न दें क्योंकि इनमें कोई दम नहीं है।
वैक्सीन को केवल हमारे शरीर में कोरोना वायरस को पहचानने को उसके खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने के लिए बनाया गया है। इसमें हमारी कोशिकाओं (सेल्स) के अंदर प्रवेश करने की क्षमता नहीं होती है। जेनेटिक कोड इन्हीं कोशिकाओं के अंदर मौजूद रहते हैं।
मिथक 5- वैक्सीन भरोसेमंद नहीं
एक और लंबा डर जो नागरिकों को वैक्सीन जैब मिलने से रोक रहा है, वह छोटी समयरेखा है जिसमें वैक्सीन मॉडल को इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी गई है।
वैक्सीन को लेकर एक बड़ा डर जो लोगों के मन में बैठा हुआ है वह वैक्सीन का कम समय में तैयार होना है। दूसरी वैक्सीन के तैयार होने में वर्षों का समय लगता है लेकिन कोरोना वायरस वैक्सीन को जल्दी मंजूरी मिल गई है। इसे लेकर लोगों के मन में शक है और टीका लगवाने से पीछे हट रहे हैं।
वैक्सीन की टाइमलाइन को लेकर जो भी डर है वह बिल्कुल सही नहीं है। वैक्सीन की मंजूरी के लिए कड़े परीक्षण और अध्ययन किए गए हैं जो सुरक्षा के सभी मानकों को पूरा करते हैं और वैश्विक स्वास्थ्य नियामक से इन उपायों को मान्यता मिली है। चूंकि यह वायरस तेजी से फैल रहा है सिर्फ इसलिए टीकों को जल्दी से उतारा गया है लेकिन यह संदेह की कोई वजह नहीं है।
मिथक 6- वैक्सीन से प्रजनन क्षमता पर असर
वैक्सीन को लेकर एक अफवाह और भी है कि वैक्सीन आपकी प्रजनन क्षमता को खत्म करता है और बांझपन की समस्या पैदा करती है। लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत है और इस बारे में ध्यान देने की जरूरत ही नहीं है। ऐसी अफवाहें कई वैक्सीन के साथ पहले भी फैलाई जाती रही हैं।
कोविड-19 या किसी अन्य वैक्सीन से बांझपन या यौन रोग को लेकर कोई साइड इफेक्ट नहीं है। आज तक किसी भी शोध में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है और न ही इसके कोई प्रमाण मिले हैं।
यह अफवाह इस वजह से फैली है क्योंकि अभी गर्भवती महिलाओं को इस टीके से अलग रखा गया है। गर्भवती महिलाओं को इसलिए बाहर रखा गया है क्योंकि उनके अंदर प्रतिरक्षा की कमी होती है।