गोड्डा
रविवार को रंगमटिया गोड्डा में शहीद रघुनाथ महतो जयंती पर उनके छायाचित्र पर तेल पानी धुप दीप पुष्प अर्पित कर जयंती मनाई गई। मौके पर अखिल भारतीय आदिवासी कुड़मि महासभा के संस्थापक सदस्य व हुल फाउंडेशन के संयोजक व आजसू के केंद्रीय सचिव संजीव कुमार महतो ने बताया कि चुहाड़ विद्रोह जिसे कुड़मि विद्रोह भी कहते हैं। भारत में ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह की आगाज झारखंड के आदिवासियों द्वारा 1700 ई के मध्यार्ध के आस पास के काल में ही किया । भारत के आजादी के संघर्ष इतिहास में बहुत विस्तृत विवरण आमजन को पढ़ाया नहीं जा रहा पर झारखंड में क्रांति के इतिहास समेत कई पुस्तकें हैं जो शहीद रघुनाथ महतो समेत तमाम शहीदों पूर्वजों के संघर्ष की गाथा सहेज कर रखे हैं।
आजादी के लिए भारतीयों के संघर्षगाथा में रघुनाथ महतो पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने जिन्होंने अंग्रेजों के द्वारा पहला कदम रखे जाने का सशस्त्र विरोध किया । अंग्रेजी हुकूमत के सेना और अधिकारियों का जबरदस्त विरोध किया और इनके नेतृत्व में बृहद झारखंड श्रेत्र के तमाम स्थानीय लोगों का एक बड़ा फौज खड़ा हो गया था। इनका फौज इतना बड़ा था कि अंग्रेजों की सैनिक छावनी की ताकत भी बौनी पड़ रही थी । अंग्रेजी हुकूमत अपने मन माफिक बृहद झारखंड सीमा के अंदर गतिविधियों को अंजाम देने में असफल हो रहे थे। 5 अप्रैल 1778 को सिल्ली , रांचो के लोटा जंगल में रघुनाथ महतो विद्रोहियों के साथ बैठक कर रहे थे इसकी सूचना गोपनीय तरीके से अंग्रेज अधिकारियों को मिली और गुपचुप तरीके से घेर कर गोली बारी शुरू कर दिया। रघुनाथ महतो समेत तमाम आदिवासी स्थानीय लोग तीर धनुष और पारंपरिक हथियार से अंग्रेजों के आधुनिक गोली बारुद जैसे हथियार के सामने ठीक नहीं पाये और उसी युद्ध में शहीद हो गये । क्योंकि अंग्रेजों और उनके चमचों के लिए बृहद झारखंड और यहां के स्थानीय आदिवासी के बारे में बहुत कम जानकारी थी इसलिए इनके चमचों ने विद्रोहियों को राड़-चुहाड़ कहकर संबोधित करते उसमय उन्हें ये पता ही नहीं था वे इतना जानकारी हासिल ही नहीं किये थे आदिवासियों में भी अलग अलग कबिला है अगर पता होता तो इस विद्रोह का नाम बांकि विद्रोह की ही तरह कबिला के नामपर मतलब कुड़मि विद्रोह दिया जाता। मौके पर संजीव महतो के साथ साथ कुंदन कुमार, मिथुन महतो, बेचन राय, शिबू महतो, विवेक कुमार आदि प्रमुख रुप से उपस्थित रहे।
गोड्डा से कौशल कुमार की रिपोर्ट