उमेश यादव
गारू कहते है प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम है, लेकिन प्यासे को पानी पिलाने वाले लोगों में ही यदि कमीशन का भूत सवार हो जाय तब तो लोगों को आत्मनिर्भर ही बनाना होगा। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ गारू प्रखंड के बारेसांढ़ के टोला डेढ़गांव की। यहाँ 2 वर्ष पहले जब मुखिया, पंचायत सचिव व अन्य अधिकारियों ने बताया कि जलमीनार लगना है, तो गांव वाले खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। परंतु वह जल मीनार 4 दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात साबित हुई। डेढ़गांव के बगईकोना टोला में बने जलमीनार महज 1 महीने में खराब हो गई। तब लोगों के पानी पीने के लाले पड़ने लगे, उसके बाद लोगों ने आनन-फानन में उसी बोरिंग में पुनः चापाकल लगा दिये। चूकि जल मीनार लगाने का क्रम में कई पाइप इधर उधर हो गए थे, जिसके कारण पाइप फट गया तथा इस गर्मी में पानी भी सूखने लगी। अब उसके चापाकल के बगल में लगे जलमीनार महज हाथी का दांत साबित हो रही है। वहीं बगईकोना टोला के रेखा देवी, रजमानिया देवी, सुनैना देवी, राजेश राम, अमीर कोरवा आदि नें सम्बंधित विभाग से पेयजल की समस्या से निजाज दिलाने का मांग किये।
गारू प्रखंड में 3 दर्जन से अधिक जलमीनार खराब
गारू प्रखंड के 8 पंचायत की बात अगर की जाए तो लगभग 3 दर्जन से भी ज्यादा जलमीनार या तो अधूरे या खराब पड़े हैं। वैसे सवाल यहां पर यह उठता है कि, आखिर किन कारणों से सरकार के लाखों रुपए बेकामयाब हो रहे हैं?
क्या जलमीनार लगाना विभाग का एक विफलता है? क्योंकि लोगों का तो यही कहना है कि इससे बेहतर चापाकल ही होता। कम से कम स्थानीय मिस्त्री से बनवा तो लेते थे।
मायापुर के हुदूंगड़ा में डेढ़ वर्ष से पीते हैं नदी चूँवा का पानी
इधर गारू प्रखंड के मायापुर पंचायत अंतर्गत हुदुगड़ा टोला में डेढ़ वर्षो से ग्रामीण नदी-चूँवा का पानी पीने को विवश हैं। ग्रामीण राजन्ति देवी व सीमा देवी बताती है, की बगल के बुढ़ा नदी या खेत में चूँवा बनाकर ही हमलोग पानी पीते हैं।