गाेड्डा
आज 9 फरवरी को शहीद चानकु महतो हूल फाउंडेशन द्वारा रंगमटिया स्थित स्मारक स्थल में चानकु महतो जयंती मनाया गया। फाउंडेशन के संरक्षक संजीव कुमार महतो ने बताया कि अपना माटी-अपना दाना, पेट काटके नहीं देंगे खाजाना के नारा के साथ ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी थी चानकु महतो ने। जिस समय तात्कालीन जंगल तराई यानि वर्तमान संथाल परगना में सिदो-कान्हू के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आंदोलन चल रहा था ठीक उसी समय गोड्डा व आसपास क्षेत्र में चानकु महतो जो कि अपने कुड़मि स्वशासन व्यवस्था के परगणैत थे, इनके नेतृत्व में स्थानीय आदिवासी गैर-आदिवासी समुदाय ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलनरत थे।
शहीद चानकु महताे का जन्म 9 फरवरी 1816 को रंगमटिया गाेड्डा हुआ था। उस समय देश में अंग्रेज रैयतों के जमीन छीनकर महाजनों को दे रहे थे और आदिवासियों के प्रथागत परंपराओं पर रोक लगा रहे थे इसके विरुद्ध चानकु महताे ने मूल रैयताें काे संगठित कर विरोध करने लगे , फिर 30 जून 1855 को पूरे जंगल तराई के ब्रिटिश विद्रोहियों की बैठक में चानकु महताे समेत तमाम विद्रोहियों ने अपने आंदोलन को संगठित कर शहीद सिद्धो -कान्हू के नेतृत्व में सामुहिक विद्रोह शुरू किया जिसे संताल हुल या हुल विद्रोह के नाम से जाना जाता है विद्रोह इतना उग्र हो गया कि मुठभेड़ में कई अंग्रेज मरे और कई आंदोलन के दौरान ही गोड्डा पथरगामा के करीब बाड़ीडीह नामक गांव से चानकू महताे काे गिरफ्तार कर लिया गया। और 15 मई 1856 काे गाेड्डा के राजकचहरी स्थित कझिया नदी किनारे सरेआम फांसी पर लटका दिया गया और इसी के साथ चानकु महतो हमेशा का लिये अमर हो गये । मौके पर शहीद के चित्र पर तेल, पानी, धुप, दीप, अगरबत्ती अर्पित करने वालों में प्रुमुख रुप से संजीव कुमार महतो , अजित कुमार सिंह, देवेंद्र महतो, जवाहरलाल यादव, राजकुमार मंडल, कुंवर दशरथ महतो, दयानंद भारती महतो, मालेश्वर महतो, रंजीत मिश्रा, किशुन महतो, भुवनेश्वर महतो, काली महतो, रघुवंश महतो, आह्लाद महतो, लक्ष्मण महतो, गौतम महतो, श्रीधर महतो, जन्मजय महतो समेत सैकड़ों लोगों ने भाग लिया।
गोड्डा से कौशल कुमार की रिपोर्ट