चतरा : पोस्ता से अफीम, अफ़ीम से ब्राउन शुगर की कारोबार से सिस्टम और नागरिक चिंतित हैं।होना भी चाहिए। क्योंकि इस से युवा पीढ़ी बर्बाद एंव भूमि बंजर हो रहा है। युवा पीढ़ी ही देश की असल शक्ति है। इस शक्ति की तबाही के लिए जिम्मेदार कोई और नहीं अफीम के कार्य में लिप्त कारोबारियों के साथ प्रत्यक्ष एंव परोक्ष रूप से संरक्षण देने वाली शक्तियां भी हैं। हालांकि इन दिनों पोस्ता की लहलहाती खेती को नष्ट करने के लिए सुदूरवर्ती क्षेत्रों में सिस्टम लगातार पसीना बहा रही है।परंतु जिस समय खेती के लिए जमीन तैयार की जाती है , उसी समय कारवाई होने से तस्करों की कमर टूट जाती।
सवाल यह उठ रहा है कि खुले आकाश के नीचे भूमि पर एकड़ और बिगहा में पोस्ता अफीम के लिए खेती योग्य जमीन तैयार की जाती है।
वन विभाग की जिम्मेदारी वन भूमि की निगरानी के लिए कर्मियों की विधिवत नियुक्ति भी है। पुलिस के पास ग्रामीण पुलिस है। जिले में खुफिया एजेंसी भी है।क़ानून की पालन करने और कराने के लिए जिम्मेदार पदाधिकारी भी हैं।फिर यह गैर कानूनी अफीम की कारोबार का फालना फूलना , एक साथ कई सवाल खड़े कर रहे हैं। इन सवालों में ही अफीम से सम्बंधित जवाब छुपा है।
अफीम की कारोबार के लिए समाज के हर वर्ग के साथ जिले के जनप्रतिनिधि भी उतनी ही जिम्मेदार हैं, जितना सिस्टम जिम्मेदार है। अफीम की खेती करने वाला जिले के ही नागरिक हैं। इसी लिए यह पंक्ति चतरा कह रहा है कि, मुझे अपनो ने लुटा, गैरों में कहां दम था। मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था।
रिपोर्ट राजधानी न्यूज से बबलू खान