दुमका प्रियव्रत झा
सदियों से सामाजिक उपेक्षा का दंश झेल रहे अनुसूचित जाति से सरोकार रखने वाले मोहली समाज के लोग मौजूदा दौर में भी सरकारी उपेक्षा की चक्की में पीशे जा रहे हैं। ज्ञात रहे कि नगर पंचायत बासुकीनाथ अंतर्गत मोहली समुदाय के लोग किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं मिलने से आक्रोशित हैं। वर्तमान में इनकी स्थिति ऐसी हो गई है कि अपने पारंपरिक पेशे को जीवित रखना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। बांस के बने सूप डलिया पंखा आदि तरह-तरह की उपयोगी वस्तुएं इन्हीं समुदाय की देन है। मेहनत और कुशल कारीगरी के बल पर इन लोगों के द्वारा बनाए गए बांस के उत्पाद भारत ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय है। लेकिन आर्थिक बदहाली के कारण बदलते जमाने के साथ कदम ताल मिलाकर चलना इनके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। पिछले 20 वर्षों से जरमुंडी थाना के समीप अजय मोहली अपने पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ाते हुए किसी तरह गुजर बसर कर रहा है। महंगाई के इस विकट दौर में बांस की कीमतों में हो रही अप्रत्याशित वृद्धि के कारण अजय के सामने अपने परंपरागत धंधे से जुड़े रहना टेढ़ी खीर बना हुआ है। सोनिया देवी को महज दो ढाई सौ रुपए की कमाई से परिवार का पालन पोषण करना कठिन मालूम पड़ता है। वही यशोदा देवी धंधे को अलविदा कह कर रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली मुंबई जाने का बात करती है। गौरतलब है कि लघु कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए झारखंड सरकार के द्वारा अनेकों कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बावजूद इस परंपरागत धंधे से जुड़े रहने वाले लोगों का पलायन करने की बात करना सरकार की नीति और नियत सवाल खड़ा कर देता है।