Breaking
Tue. Dec 16th, 2025

सबा आलम पर विभाग की खास मेहरबानी? ट्रांसफर-पोस्टिंग घोटाले में रेंजर प्रिंस का खुलासा, CID जांच शुरू

जमशेदपुर : झारखंड के वन विभाग में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है। विभाग में कार्यरत प्रिंस नामक रेंजर ने कथित तौर पर आइएफएस अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर एक समानांतर ‘सिस्टम’ खड़ा कर रखा था, जहां उनकी अनुशंसा पर अफसरों का तबादला तय हो रहा था। इस मामले में शत्रुघ्न नामक व्यक्ति ने पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों से शिकायत की, जिसके बाद पुलिस मुख्यालय ने सीआइडी को जांच का आदेश दे दिया है।

शिकायत के साथ प्रिंस और शत्रुघ्न के बीच ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर हुई बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग और अन्य सबूत भी सौंपे गए हैं। ऑडियो में स्पष्ट सुना जा सकता है कि किस तरह प्रिंस फोन पर शत्रुघ्न को अधिकारियों की सूची तैयार करने का निर्देश दे रहा था। इस सूची में सबसे प्रमुख नाम है सबा आलम का, जिनके बारे में प्रिंस ने कहा – “सबा आलम अंसारी, वन प्रमंडल पदाधिकारी पश्चिम. जाने वालों में कर दो जमशेदपुर वन प्रमंडल पदाधिकारी जमशेदपुर।” गौरतलब है कि आखिरकार सबा आलम का तबादला ठीक उसी स्थान पर हुआ, जैसा प्रिंस ने सुझाया था।

सूत्रों का कहना है कि विभाग में सबा आलम को लेकर विशेष ‘मेहरबानी’ भी रही है। पिछले वित्तीय वर्ष में उनके कार्यक्षेत्र को योजना मद से सबसे ज्यादा बजट आवंटित हुआ। ऑडियो से यह भी पता चलता है कि सारंडा वन प्रमंडल के एक अधिकारी को कंजर्वेटर का चार्ज दिलाने के एवज में प्रिंस ‘रिजनेबल अमाउंट’ तय करने की बात करता है। बातचीत में यह स्पष्ट झलकता है कि रेंजर स्तर का अधिकारी भी किस तरह बड़े पदस्थापना निर्णयों को प्रभावित कर रहा था।

एनालिस्ट मानते हैं कि यह घोटाला वन विभाग की कार्यप्रणाली में गहराई तक जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार की पुष्टि करता है। जून 2024 में 40 आइएफएस अफसरों के तबादले की अधिसूचना जारी हुई थी, जिसमें प्रिंस की सूची के 50 प्रतिशत अधिकारियों को उसी जगह पोस्ट किया गया, जैसा उसने सुझाया था। ऑडियो से यह भी सामने आया कि प्रिंस अधिकारियों के सेवा काल और स्थानांतरण अवधि की जानकारी रखते हुए ‘प्लेसमेंट मैनेजमेंट’ कर रहा था।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सीआइडी जांच में यह साबित हो गया कि तबादला घोटाले में विभागीय शीर्ष अधिकारियों की भी भूमिका रही है, तो सरकार की छवि पर बड़ा सवाल खड़ा होगा। फिलहाल, सबा आलम का नाम विभागीय ‘फेवर लिस्ट’ में क्यों और कैसे आया, यह भी जांच का अहम हिस्सा होगा।

विभागीय सूत्र बताते हैं कि लंबे समय से ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर रेंजर प्रिंस की ‘सुपारी एजेंसी’ जैसी भूमिका पर चर्चा थी। अब ऑडियो सामने आने के बाद यह महज चर्चा नहीं, बल्कि विभागीय सिस्टम की पोल खोलता दस्तावेज बन चुका है।

Related Post