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महुआडांड़ में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई ईद उल फितर की त्योहार।कोरोना लॉकडाउन से मुक्ति के बाद पहली बार धुम धाम से मनाई गई रही है ईद।

महुआडांड़ में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई ईद उल फितर की त्योहार।कोरोना लॉकडाउन से मुक्ति के बाद पहली बार धुम धाम से मनाई गई रही है ईद।

महुआडांड़ प्रखण्ड के पुरे क्षेत्र में पुरे हर्षोल्लास के साथ मुस्लिम समुदायों के लोगों ने ईद का त्यौहार मनाया। वहीं सभी लोगों ने ईद के नमाज अदा किया एक दूसरे लोगों से गले मिल कर मिलकर एक दुसरे को मुबारकबाद दिए। महुआडांड़ प्रखंड के सभी मस्जिदों में ईद की नमाज 8:00 बजे अदा की गई महुआडांड़ जामा मस्जिद जामिया नूरिया जियाउल इस्लाम में मौलाना सऊद आलम मिस्बाही, गौसिया मस्जिद में इलाहाकुल हक, तथा मदीना मस्जिद में हाफिज खालिद अहमद के इमामत नमाज अदा की गई। ईद को लेकर सुबह से ही लोग तैयारी में जुड़ गए और वक्ते मुकर्रा से पहले ही ईद की नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में दाखिल हो गए। जिसके बाद इमाम के द्वारा ईद के त्यौहार को लेकर विस्तृत रूप से लोगों को बताया गया। जिसके बाद सभी लोगों ने ईद की नमाज अदा की बाद नमाज खुत्बा पढ़ी गई। वही ख़ुत्बा के बाद इमाम साहब के द्वारा देश दुनिया में अमन व शांति के लिए दुआ की गई। नमाज खत्म होने के बाद सभी एक दूसरे से गले मिलकर ईद का मुबारकबाद दिए। और सभी लोग कब्रिस्तान पहुंचकर अपनी मरहम इनके लिए दुआएं मगफिरत की।

खाने खिलाने का दौर।

नमाज खत्म होने के बाद एक दूसरे के घर आना जाना प्रारंभ हो गया। और खाने-खिलाने की दौर प्रारंभ हो गई। खासकर इन दिनों घरों में सेवइयां बड़ी चौक से बनाई जाती है। शिवन्या के साथ-साथ शीर खुरमा, फालूदा बिरयानी, दही बड़ा समेत अन्य प्रकार के पकवान पकाए जाते हैं। साथ यह परंपरा है कि यह सब पकवानो को गरीबों में भी बाटी जाते हैं। यह सिलसिला सुबह से शाम तक चलता रहता है लोग एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं और खाने खिलाने का कार्य होते रहता है।

नए कपड़े पहनना।

ईद के मौके पर खासकर सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं। ज्ञात हो कि रमजान उल मुबारक की 30 रोजे रखने के बाद लोगों को यह ईद का तोहफा मिलता है। जिसके लिए लोग 30 दिनों तक रोजे रखकर उसका इंतजार करते हैं। इस दिन छोटे बड़े बच्चे बूढ़े सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं।

गरीबों की होती है मदद।

इस दरमियान मुस्लिम समुदाय के लोग गरीबों को काफी मदद करते हैं।काश कर रमजान से लेकर ईद तक सदका, जकात, खैरात, अतिया,फितरा के रूप में पैसे निकालते हैं और उसे गरीबों के बीच बांटा जाता है। हदीस शरीफ में आया है कि जो भी जकात देने की ताकत रखते हैं वह अपने कुल संपत्ति का ढाई परसेंट जगत के तौर पर निकलते हैं। ओलमाओ का कहना है कि ढाई परसेंट का हक गरीब और मिस्कीनो का है इसे कोई भी अपने पास ना रखें। अगर इससे वह रखता है तो वह गुनाहगार होगा। आज से यह रस्म सदियों से चला आ रहा है। ताकि लोगों को इस रकम से मदद मिल सके। वहीं क्षेत्र के तौर पर जो पैसे निकाली जाती है अनाज के हिसाब से निकाला जाता है। यह कहीं भी एक सा नहीं होता अगर कहीं 50 होता है तो कहीं 100 तो कहीं 500 भी हो सकते हैं।

ईद की शुरुआत।

मान्यता है कि ईद की शुरुआत तब हुई जब पैगंबर हजरत मोहम्मद मक्का से मदीना आए थे। तब से यही ईद का त्यौहार मनाया जाता है। कुरान में दो पवित्र दिनों में ईद-उल-फितर निर्धारित किया है। इसी कारण साल में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है। जिसमें पहली ईद-उल-फितर (मीठी ईद) के नाम से जाना जाता है और दूसरी को ईद-उल-अज़हा (बकरीद) के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी।

ईद से पूर्व 30 दिन का उपवास रखा जाता है जिसे रोजा कही जाती है। रोजे के दौरान कुरान शरीफ की 30 पारे को इमाम के द्वारा बिना देखे तरावीह के रूप में पढ़कर सुनाया जाता है। 30 रमजान पूरा होने के बाद ईद का त्यौहार आता है। यह मुस्लिमों के लिए बहुत बड़े त्यौहार के रूप में माना जाता है।

ईद के मौके पर सुरक्षा व्यवस्था का था खाशा इंतजाम।

ईद के त्यौहार को लेकर महुआडांड़ पुलिस प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद थी। हर जगह पुलिस बल तैनात किए गए थे। महुआडांड़ थाना प्रभारी आशुतोष यादव की अगुवाई में सभी मस्जिदों के बाहर सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम किया गया था। साथ ही पुलिस प्रशासन अन्य स्थानों पर भी भ्रमण कर रही थी ताकि ईद के दौरान किसी प्रकार की कोई बात विवाद ना हो। प्रशासन के लोगों से मुस्लिम धर्मावलंबियों ने नमाज पढ़कर निकलने के उपरांत गले मिलकर एक दूसरे को मुबारकबाद कर दिया।

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