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गारू प्रखंड के लिए पलामू टाइगर रिजर्व वरदान या अभिशाप

गारू प्रखंड के लिए पलामू टाइगर रिजर्व वरदान या अभिशाप

 

संवाददाता*उमेश यादव*की रिपोर्ट गारू जिला ब्यूरो बबलू खान के साथ

*गारू*

प्राकृतिक सौंदर्य, छोटे-छोटे नदियां, खिलखिलाती झरना, छोटे बड़े पहाड़ और दो पहाड़ों के बीच बने घाटी गारू संपूर्ण प्रखंड क्षेत्र में प्रकृति अपनी आभा बिखेर रखी है। देश के आजादी के काल में इन क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ खुद को सुरक्षित और अविचलित महसूस करते हुए घूमते रहते थे। गांव की बुजुर्गों की माने तो उस दौरान क्षेत्र की आबादी पूरी तरह से इसी क्षेत्र के वन और वनस्पति पर निर्भर थे। वर्ष 1970 के दशक में तत्कालीन पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र में कम्पनी द्वारा बांस की खरीदारी होती थी। गारू, बारेसांढ़ क्षेत्र के सभी वर्गों के लोग दो आने प्रतिदिन की मानदेय पर बांस कटाई का कार्य करते थे। परन्तु जैसे ही इस क्षेत्र के वन को बाघ के लिए आरक्षित किया गया, लोगों (खासकर आदिवासियों) के परंपरा में ग्रहण लगने के साथ साथ विकास की कल्पना करना भी मुश्किल हो गया है।

 

*1974 में बाघ परियोजना के अंतर्गत गठित 9 बाघ आरक्षित क्षेत्र में से एक पलामू टाइगर रिजर्व*

पलामू टाइगर रिजर्व झारखंड का इकलौता टाइगर रिजर्व है। इसे भारत की मूल नौ टाइगर रिजर्व के रूप में जाना जाता है। यह रिजर्व, लगभग 1,014 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका कोर क्षेत्र, 414 वर्ग किमी. है और इसका बफर क्षेत्र 600 वर्ग किमी. के आसपास है।

 

*सड़क और नेटवर्क के क्षेत्र में जानवर जैसा वर्ताव करते हैं प्रशासनिक अधिकारी*

वर्ष 2000 ई. के आसपास माओवादियों का गढ़ माना जाता था यह क्षेत्र। इस क्षेत्र के भोले-भाले लोगों को लगातार नक्सली विकास में बाधक हैं का पाठ पढ़ाया जाता रहा है। आज क्षेत्र में नक्सली की आवागमन तो रुक गयी है, परन्तु जनता के विकास नामक स्वर्णिम सपने अभी तक दस्तक नहीं दे पा रही है। क्षेत्र से गुजरने वाली राजकीय पथ एसएच-9 अपनी अंतिम सांसे गिन रही है। हाल में ही द्वारसेनी घाटी में सड़क बनाने का कार्य शुरू हुआ था,जिसे वन विभाग द्वारा रोक लगा दिया गया। आज भरी बरसात में पर्यटक जब सड़क से गुजरते हैं तो स्थानीय लोगों से सड़क के बारे में पूछते हैं। तब एक आम आदमी भी बोलता है वन विभाग एनओसी नहीं दिया है।

 

*पहाड़ों पर ढूंढ़ते हैं नेटवर्क*

एक तरफ दुनिया 5G टेक्नोलॉजी को विकसित करने में लगी हुई है। वही पीटीआर से प्रभावित क्षेत्र के लोग सालों से घाटी पहाड़ी में नेटवर्क ढूंढ़ते फिर रहे हैं। यहां सवाल यह उठता है कि, पीटीआर क्षेत्र घोषित करने से पहले सरकार प्रभावित लोगों के विकास के लिए क्या क्या रोडमैप सोची थी? आखिर सरकार के गलत नीतियों का खामियाजा क्यों भुगते आम जनता?

गारू बारेसांढ़ क्षेत्रों में पढ़े लिखे लोगों की कमी नहीं है लेकिन सड़क और नेटवर्क जैसे बुनियादी सुविधाएं नहीं होने के कारण हजारों लोग बेरोजगार बैठे हैं। कई लोगों को वन विभाग दैनिक मजदूर के रूप में काम करवाते हैं, परंतु उसे कब निकाल दिया जाए इसका भय सताता रहता है।

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