सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि जो पक्ष निजी तौर पर सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा-89 के तहत आने वाले मुकदमे आपसी समझौते से निपटाते हैं, तो उन्हें मुकदमे की पूरी फीस वापस मिलेगी। शीर्ष अदालत के इस फैसले से वादी आपसी समझ से दीवानी मुकदमे निपटाने के लिए प्रेरित होंगे। इस मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष के फैसले को चुनौती देने हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया था सीपीसी की धारा- 89, तमिलनाडु न्यायालय शुल्क की धारा-69ए और वाद मूल्यांकन अधिनियम- 1955 में पक्षकारों के बीच अदालती विवाद निपटारे के तरीके शामिल होंगे। ये सभी तरीके बाद में अदालत के पास कानूनी रूप से आ गए हैं।
1955 अधिनियम की धारा 69ए और सीपीसी की धारा-89 के तहत विवादों के निपटान पर धनवापसी से संबंधित है। इसके अनुसार जहां न्यायालय पक्ष को सीपीसी की धारा- 89 में उल्लिखित विवाद के निपटान के किसी भी तरीके के लिए किसी पक्ष को रेफर करता है तो भुगतान किया गया शुल्क वापस कर दिया जाएगा। इसके लिए विवाद निपटान का इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।
मौजूदा मामले में, जबकि अपीलें अभी भी उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन थीं, पक्षकारों ने अदालत से बाहर एक निजी समझौता किया और विवाद को हल किया। मगर उच्च न्यायालय रजिस्ट्री ने इस आधार पर कोर्ट फीस वापस करने से मना कर दिया कि अदालत ने इस तरह नियमों को अधिकृत नहीं किया है।
न्यायमूर्ति एम.एम. शांतानागौदर की पीठ ने यह फैसला खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, हमारी राय में यह फैसला स्पष्ट रूप से एक बेतुके और अन्यायपूर्ण परिणाम की ओर ले जाता है, जहां पक्षकारों के दो वर्ग बिना संदर्भ के अपने मामले निपटा रहे हैं तो वे फीस वापस लेने के हकदार होंगे।
विवाद निपटान के तरीके
धारा- 89 के तहत वाद निपटान के चार तरीके है:- (ए) पंचाट; (बी) सुलह; (सी) लोक अदालत के माध्यम से निपटान सहित न्यायिक समझौता और (डी) मध्यस्थता।
फीस का तरीका
– अदालत में सिविल मुकदमों की फीस ‘कोर्ट फीस मुकदमा वैल्यू ऐक्ट’ के हिसाब से तय की जाती है, जो आमतौर पर 10 फीसदी तक होती है।
– आपराधिक मामलों में कोई कोर्ट फीस नहीं ली जाती। अपील करने पर यह तभी ली जाती है जब निचली अदालत सजा के साथ जुर्माना लगाती है। जुर्माना जमा करने पर ही उच्च अदालत में अपील की जा सकती है।