*सैरात के भाड़ा बढ़ोत्तरी मामले में लें विद्वान अधिवक्ताओं व सेवानिवृत अधिकारियों की राय*
*चैंबर के पदाधिकारियों के झांसे में आकर ना करवाएं बेवजह फोटो सेशन*
*यदि जीतना हो तो अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें , कानूनी तरीके से रखें अपना मजबूत पक्ष*
जमशेदपुर, 13 जून। कुछ वर्षों पहले सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री को टाटा स्टील लैंड डिपार्टमेंट द्वारा एक पत्र दिया गया. जिसमें चैंबर भवन के समक्ष 32600 वर्ग फुट भूमि उन्हें आवंटित की गई एवं सबलीज हेतु आवश्यक न्यूनतम शुल्क जमा करने का निर्देश दिया गया. टाटा स्टील द्वारा चैंबर द्वारा मांग की गई यह राशि मात्र एक लाख रुपए
थी. किंतु चैंबर के योग्य व सक्षम पदाधिकारियों ने टाटा स्टील को पत्र का जवाब देते हुये शुल्क की राशि 1 लाख से घटा कर मात्र 1 रुपए करने का आग्रह किया. टाटा स्टील ने उपरोक्त पत्र का जवाब तक नहीं दिया और आगे चलकर वह भूमि टी. के. इंडिया रियल इस्टेट प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित कर दी गई.
व्यापारी नेता द्वय कमल किशोर अग्रवाल एवं संदीप मुरारका ने बयान जारी करते हुए कहा कि स्वार्थ से भरे हुए पदाधिकारी जो चैंबर की भूमि नहीं बचा पाए, वे सैरात के मुद्दे पर क्या लड़ेंगे ? चैंबर के पदाधिकारी केवल फोटो सेशन व अखबार में नाम के लिये कार्य करते हैं. हाल ही में फरवरी माह में चैंबर के लोगों ने बिष्टुपुर अवस्थित छगनलाल दयालजी के 32 लाख लूटकांड के मुद्दे पर काला बिल्ला लगा कर धरना प्रदर्शन किया था और माईक पर चिल्ला चिल्ला कर प्रशासन को 72 घंटे का अल्टीमेटम दिया था. यह भी कहा था कि यदि अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं होती है तो 72 घंटे बाद उग्र आंदोलन किया जाएगा. अखबारों में इनकी खूब तस्वीर छपी और व्हाट्सएप पर जोरदार छाए रहे. किंतु 72 घंटे की जगह 4 माह बीत गए, चैंबर के पदाधिकारियों ने ना कोई एक्शन लिया और ना कोई बयान दिया.
कमल किशोर अग्रवाल एवं संदीप मुरारका ने कहा कि हमलोग अपने सैराती दूकानदार भाईयों और बहनों से अपील करते हैं कि वे अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें. जमशेदपुर में कई विद्वान अधिवक्ता हैं, कई योग्य परामर्शदाता हैं, झारखंड सरकार व टाटा स्टील से सेवानिवृत हुए कई वरिष्ठ अधिकारी हैं, उनकी सलाह लें और कानूनी तरीके से अपने पक्ष को मजबूती से रखें. दूकानदार बेवजह चैंबर के पदाधिकारियों के बहकावे में ना आयें वरना वे लोग काला बिल्ला लगा कर फोटो खिंचवाने के चक्कर में सैरात की मूल लड़ाई की दिशा को भटका देंगे.
कमल किशोर अग्रवाल एवं संदीप मुरारका ने कहा कि सैरात की यह लड़ाई काफी लंबी है. क्योंकि इसमें पूर्व में प्रथम पक्ष जुस्को अथवा टाटा स्टील हुआ करता था, अब स्वयं झारखंड सरकार है. यानी सैरात की बन्दोबस्ती एवं निर्माण की प्रकृति को भी बदले जाने की संभावना है. जिन दूकानदारों ने दूसरे से दूकान खरीदी है अथवा पारिवारिक बंटवारे में आई हो, यदि वर्तमान मालिक का नाम सैरात पंजी में अंकित ना हो, तो उसकी दूकान रद्द भी हो सकती है.
सैरात की लड़ाई लड़ने के पहले इसके अर्थ को समझना आवश्यक है कि सैरात है क्या ? सैरात का अर्थ ना केवल दूकाने हैं बल्कि मत्स्यपालन, हाट, मेला, तोड़ी, महाल तथा नौकायन को पट्टे पर दिये जाने से प्राप्त आय भी इसी के अंतर्गत आती हैं. अतः काबिल अधिवक्ताओं के जरिये ही इस लड़ाई को आगे बढ़ाना उचित होगा, ना कि नुक्कड़ पर फोकटिया भाषण बाजी से इस मुद्दे का हल निकलेगा. अतएव इस कानूनी लड़ाई को विद्वान सलाहकारों की राय से ही कागज पर आगे बढ़ाएं. इसमें चैंबर को काला बिल्ला व फोटो सेशन की राजनीति करने का अवसर ना दें.
टाटा जयपुर ट्रेन, जमशेदपुर से हवाई सेवा, सिक्कों की समस्या, डी वी सी की बिजली, शिक्षा स्वास्थ्य पर्यटन के क्षेत्र में कई मुद्दे पहले से चैंबर के पास लंबित हैं. जिनके निदान में चैंबर के पदाधिकारी कई वर्षों से लगे हैं. उन्हें उनके लक्ष्य से भटकने ना दिया जाए. आशा है चैंबर वाले जल्द ही जमशेदपुर से हवाई सेवा भी आरंभ करवा देंगे और उद्यमियों को डीवीसी की बिजली भी दिलवा देंगे. सैराती दूकानदार भाई राजनीति का शिकार ना हों और अपनी लड़ाई स्वयं लड़ें.
*कमल किशोर अग्रवाल*
*संदीप मुरारका*