*अडानी -अंबानी की हितैषी भारतीय जनता पार्टी का किसान प्रेम सिर्फ दिखावा एवं ढकोसला।*
किसानों का हक अधिकार और जमीन लूटकर अडानी – अंबानी के हाथों में सौंपने के लिए कानून बनाने वाली जन विरोधी एवं किसान विरोधी भारतीय जनता पार्टी के लोगों के मुंह से किसान हित की बातअत्यंत हास्यास्पद एवं बेमानी लगती है। जहां तक झारखंड की बात है तो भारतीय जनता पार्टी की रघुवर सरकार ने झारखंडी किसानों की जमीनें लूटने के लिए किस प्रकार षड्यंत्र किया, किसान विरोधी एवं जन विरोधी सीएनटी – एसपीटी संशोधन विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक को विधानसभा से पास कर झारखंडी किसानों की जमीन लूटने का षड्यंत्र झारखंड वासी अभी तक भूले नहीं है। झारखंड के गोड्डा में अडानी के पावर प्लांट निर्माण हेतु रघुवर सरकार ने किस नंगई के साथ किसानों की जमीन छीन कर अडानी के हाथों सौंप दी यह भी झारखंड वासी अभी तक भूले नहीं है। बीजेपी के इन्हीं किसान विरोधी एवं जन विरोधी कानूनों के कारण झारखंडी जनता ने इन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब जब झारखंड में लोकप्रिय हेमंत सरकार के द्वारा किसानों की 980 करोड़ रुपए की ऋण माफी एवं 100% एवं 50% अनुदानित दर पर खाद बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी के पेट में मरोड़ उठने लगी है ,किसानों के देशव्यापी लोकतांत्रिक आंदोलन को देश विरोधी, खालिस्तानी आतंकवादियों और अलगाववादियों का आंदोलन कहने वाली भाजपा आज किसान हित की बात का दिखावा कर ढकोसला एवं राजनैतिक नौटंकी कर रही है। जहां तक किसानों के धान के भुगतान की बात है तो भाजपाइयों को शायद यह पता नहीं है या वे जानबूझकर नौटंकी कर रहे हैं की धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा केंद्र सरकार करती है और उसके भुगतान का पैसा भी केंद्र सरकार ही देती है। पलामू प्रमंडल में तो धान की खरीद की जिम्मेदारी भी एफसीआई की ही थी जो कि केंद्र सरकार का ही उपक्रम है ,और अभी तक 180 करोड रुपए का भुगतान भी एफसीआई ने नहीं किया है।
उक्त बातें झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य सह जिला प्रवक्ता दीपू कुमार सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कही है।
बयान में आगे कहा गया है कि यदि झारखंड भाजपा के नेता झारखंड के लोगों एवं किसानों के हित के लिए इतने ही चिंतित हैं तो पहले उन्हें अपने आका केंद्र सरकार से झारखंड को मिलने वाले केंद्रीय राज्यांश और जनविरोधी तथा किसान विरोधी कृषि बिल जिसके खिलाफ देशभर में किसानों के आंदोलन हो रहे हैं और दिल्ली में इन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए लगभग 500 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है इसे वापस लेने की बात करनी चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें जनहित और किसान हित की बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।