हजारीबाग में एक पत्रकार कृष्णा नंदन को झूठे छेड़खानी के मामले में जेल भेजा जाता है तो वहीं 4 अन्य पत्रकारों को भी उसमें आरोपी बनाया जाता है.इस मामले में जब ऐसोसिएशन का विरोध होता है तो बडे़ अधिकारी सुफरविजन की बात करते हैं लेकिन निर्दोष कृष्णा को जेल से बाहर लाने के मामले में सभी खामोश हैं क्यों कि वह एक छोटे हाऊस का पत्रकार है.वहीं दूसरी ओर जब राँची की एक महिला पत्रकार(सीमा-काल्पनिक)से शादी का झाँसा देकर दुष्कर्म होता है तो हजारीबाग के आरोपी सार्जेंट दीपक टोप्पो को निलंबित कर दिया जाता है न कि गिरफ्तारी होती है.जमशेदपुर में भी एक डीएसपी और एक इंस्पेक्टर को खानापूर्ति करते हुए जिले से बाहर भेज दिया जाता है लेकिन दुष्कर्म पीडिता की दर्जनों शिकायत के बाद आज तक गिरफ्तारी नहीं हुई है.पुलिस और पत्रकार के लिए एक ही राज्य में दो कानून क्यों?
पत्रकारहित में धरना पर बैठने का ढोंग करने और ऐसोसिएशन के खिलाफ चिखने-चिल्लाने वाले ढोंगी नेता कहाँ हैं कोई बताएगा अब?