जमशेदपुर:-वीमेंस कालेज में इसी सत्र से एमफिल और पीएचडी की जा सकेगी। भारत सरकार के असाधारण गज़ट में युजीसी के ऑटोनोमस काॅलेज संबंधी 2018 के रेगुलेशन में इसका प्रावधान किया गया है। मंगलवार को गूगल मीट ऐप्लीकेशन के माध्यम से आयोजित काॅलेज के विद्वत् परिषद् (एकेडमिक काउंसिल) की बैठक में सर्वसम्मति से स्नातक, स्नातकोत्तर, एमफिल और पीएचडी के रेगुलेशन को पारित कर दिया गया। प्राचार्या प्रोफेसर (डाॅ.) शुक्ला महांती की अध्यक्षता में करीब 3 घंटे तक मैराथन बैठक चली। इसमें विद्वत् परिषद् के सदस्यगण ऑनलाइन शामिल हुए। कोल्हान विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के तौर पर संकायाध्यक्ष छात्र कल्याण डाॅ. टीसीके रमण, टाटा काॅलेज, चाईबासा की पूर्व प्रभारी प्राचार्या डाॅ. कस्तूरी बोयपाई, डाॅ. केयू के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. आर. एस. दयाल शरीक हुए। काॅलेज के सभी संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, वोकेशनल कोर्स के समन्वयक व वरीय शिक्षक भी शामिल हुए। उद्योग, वाणिज्य, कानून, शिक्षा, चिकित्सा, अभियंत्रण आदि संवर्गों के प्रतिनिधि के रूप में श्री महेश अग्रवाल व श्री विनोद ठाकुर व अन्य शामिल हुए।
बैठक में लिये गये निर्णय
स्नातक
1- यूजीसी द्वारा लर्निंग आउटकम बेस्ड क्युरिकुलम फ्रेमवर्क के
तहत सभी स्नातक (प्रतिष्ठा) स्तरीय पाठ्यक्रम में क्रेडिट की एकरूपता कर दी गई है। वीमेंस कॉलेज में भी अब कला, वाणिज्य, विज्ञान आदि के स्नातक (प्रतिष्ठा) के सभी पाठ्यक्रम 148 क्रेडिट के होंगे।
2- एलओसीएफ के तहत टीचर सेंट्रिक पाठचर्या के स्थान पर लर्नर सेंट्रिक पाठचर्या पर बल दिया गया है। वीमेंस कॉलेज में सभी स्नातक पाठ्यक्रम इस तरह से होंगे कि उसमें अधिक से अधिक छात्राओं की मौलिकता और बुद्धिमत्ता विकसित हो।
3- एलओसीएफ में कौशल विकास पर भी बल दिया गया है। इसलिए सभी विषयों में इस तरह के कोर्स रखे जा रहे हैं जिससे छात्राएँ अपने मूल विषय से जुड़े हुए कौशल को भी सीख सकें। इससे उनके रोजगार पाने और आत्मनिर्भर होने के अवसर बढ़ेंगे।
4- यूजीसी ने माॅडल पाठचर्या के साथ बीस प्रतिशत तक स्थानीय संदर्भों को भी पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रावधान किया है। प्राचार्या प्रो. (डॉ.) शुक्ला महांती ने स्नातक से लेकर पीएचडी तक की पाठचर्या में झारखण्ड राज्य के इतिहास, भूगोल, राजनीति, संस्कृति व आदिवासी ज्ञान को पाठचर्या का अनिवार्य अंग बनाने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हम विश्वस्तरीय ज्ञान की संस्कृति से तभी जुड़ सकते हैं जब हम अपनी स्थानीय ज्ञान परंपरा और सांस्कृतिक चेतना को ठीक से जानें। उसका सम्मान करना सीखें। उन्होंने कहा कि आदिवासी व क्षेत्रीय भाषाओं के लोक गीत, लोकगाथा, जनजातीय मौसम एवं प्राकृतिक विज्ञान आदि के अनुवादों को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। एक परस्पर संवादी समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है।
स्नातकोत्तर कार्यक्रम
—
1- स्नातकोत्तर स्तर के सभी पाठ्यक्रम 98 क्रेडिट के होंगे। इसमें तीसरे सेमेस्टर के तहत अनुसंधान में आधार पाठ्यक्रम अनिवार्य पत्र होगा। चौथे सेमेस्टर में छात्राएँ लघु शोध प्रबंध लिखेंगी। यह आम सहमति थी कि स्नातकोत्तर में अनुसंधान का आधार पाठ्यक्रम करने से छात्राओं में एमफिल-पीएचडी से पहले ही अच्छी तैयारी हो पाएगी। जिससे गुणवत्तापूर्ण शोध आगे किये जा सकेंगे।
2- काॅलेज जल्दी ही स्वयं पोर्टल पर उपलब्ध ऑनलाइन कोर्स के क्रेडिट को मान्यता देने की प्रक्रिया शुरू करने जा रहा है।
3- प्राचार्या प्रो डॉ शुक्ला महांती ने जानकारी दी भारत सहित कुछ श्रेष्ठ विदेशी विश्वविद्यालयों से काॅलेज के एमओयू की प्रक्रिया पर बातचीत अंतिम दौर में चल रही है। ऐसा होने के बाद हम क्रेडिट ट्रांसफर के आधार पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कर पाएंगे।
4- स्नातकोत्तर हिन्दी के विशेष अध्ययन पाठ्यक्रम के तहत थर्ड जेंडर साहित्य और विमर्श को भी शामिल किया जा रहा है। सामाजिक समाकलन के लिहाज से इस पहल को सराहा गया।
एमफिल-पीएचडी पाठ्यक्रम
—
1- एमफिल पाठ्यक्रम 48 क्रेडिट का होगा। एमफिल व पीएचडी का कोर्स वर्क 12 क्रेडिट का होगा।
2- नामांकन अखिल भारत स्तरीय प्रवेश परीक्षा के आधार पर होगा। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए किसी राष्ट्रीय ख्याति वाली टेस्टिंग एजेंसी को विहित प्रक्रिया के तहत प्रवेश परीक्षा कराने के लिए अधिकृत किया जाएगा।
3- स्थानीय आरक्षण नीति का पूर्णतः पालन किया जाएगा।
4- एमफिल उपाधि धारकों तथा नेट व झारखंड स्लेट उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को प्रवेश परीक्षा से मुक्त रखा जाएगा। वे सीधे अंतिम चयन हेतु होने वाले साक्षात्कार में शामिल होंगे।
5- एमफिल व पीएचडी के लिए स्वीकृत शोध प्रस्तावों को शोध गंगोत्री पर अपलोड किया जाएगा। इसी तरह उपाधि प्राप्त लघु शोध प्रबंधों व थिसिस को शोधगंगा पर अपलोड किया जाएगा।
6- किसी भी तरह के प्लैगरिज्म को हतोत्साहित करने के लिए अलग से रिसर्च सेल की स्थापना की जाएगी। 7- शोध में ऐसे विषयों के प्रस्ताव को प्रोत्साहित किया जाएगा जो अंतरविषयी महत्व रखते हों।
8- कट, काॅपी, पेस्ट की संस्कृति को शोध नैतिकता के विरुद्ध मानते हुए सख़्त कदम उठाये जाएंगे।
बैठक में डॉ टीसीके रमण, डाॅ कस्तूरी बोयपाई और डाॅ आर एस दयाल ने भी महत्वपूर्ण बातें रखीं। बैठक का संयोजन व धन्यवाद ज्ञापन एकेडमिक काउंसिल के सदस्य सचिव डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने किया। तकनीकी समन्वयन का कार्य ज्योतिप्रकाश महांती ने किया।