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चंदवा के लाल विनीत कुमार के लिखी पुस्तक ,पुष्पी , पे बनेगी वेब सीरीज

चंदवा के लाल विनीत कुमार के लिखी पुस्तक ,पुष्पी , पे बनेगी वेब सीरीज

मुकेश कुमार सिंह

पुष्पी जीवन कि एक आत्म कथा: विनीत

चंदवा।चंदवा प्रखण्ड के अति सुदूरवर्ती क्षेत्र चेतर पंचायत के रखत गांव से निकला लड़का विनीत कुमार के द्वारा रचित पुस्तक पुष्पी का आज चंदवा के एक होटल में लेखक विनीत ने पुस्तक का विमोचन किया

शिक्षक विनीत कुमार ने अपने गांव और चंदवा जैसे छोटे प्रखंड का नाम रोशन करने का काम किया है । विनीत शिक्षक है पर अब तक उनके द्वारा 7 किताबें लिखी जा चुकी है इनके लिखे किताबों की कहानी संग्रह में कुसुम, सराय फूल ,वनस्थली, उपन्यास में एक आतंकवादी की प्रेम कथा ,एक नक्सली की मौन प्रेम, और पुष्पी बताते चलें कि पुष्पी जो किताब है कहानी है उस पर बहुत जल्द चंदवा वासियों को वेब सीरीज देखने को मिलेगा मुम्बई को ब्लैक स्क्रीन कंपनी के द्वारा इस वेब सीरीज बनेगी पुष्पि नामक किताब की कहानी से आकर्षित कंपनी ने वेब सीरीज बनाने का फैसला लिया।

और कहा पुष्पी कथा के माध्यम से कहा है। कि पुष्पी नाम की एक ग्रामीण लड़की है। कथा प्रारंभ होती है गांँव के चार लंगोटिया दोस्तों से जिनकी दोस्ती का मिसाल गांँव के बाहर भी आसपास के क्षेत्र में दिए जाते थे। विपरीत परिस्थितियों में इन दोस्तों के बीच प्रेम और ईर्ष्या जैसी मानव्य संवेदनाएं भी देखने को मिली। दोस्ती की पराकाष्ठा भी देखी गई ,जहांँ कन्हाई नामक युवक अपना सब कुछ न्योछावर कर दोस्ती का मिसाल पेश किया और अंततः वैराग्य धारण कर देश सेवा में समर्पित हो गया ।रघु ,कन्हाई और पुष्पी इन तीनों के बीच त्रिकोणीय प्रेम संबंध की कथा है यह उपन्यास ।

कथा है, चार लंगोटिया यार जिसमें पूरनचंद और हासीब मियां संपन्न हैं तथा रघु और कन्हाई काफी गरीब हैं। दसवीं कक्षा के बाद पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि एवं लगन ऐसी थी कि दो के खर्चे पर ही चारों दोस्त साथ शहर जाकर पढ़ने लगे ।गरीब परिवार का रघु जब पढ़ाई में अव्वल आया तो संपन्न दोस्त पूर्णचंद और हासीब मियां के छाती पर सांप लोट गए जिसके खर्चे पर रघु और कन्हाई पलते थे और पढ़ते थे ।फिर तो रघु के दुर्दशा और संघर्ष शुरू हो गए जिसमें जी -जान लगाकर अपनी रोजी का प्रवाह एवं परिवार का तिरस्कार एवं मार का परवाह किए बगैर कन्हाई ने पूरा साथ दिया । ऐसा साथ दिया कि उसने स्वयं अपनी पढ़ाई त्याग दी ताकि रघु के पढ़ाई का खर्च कमाया जा सके ।इसी संघर्ष के बीच जब -जब रघु इम्तिहान पास करता कन्हाई से मिलने अपनी थकान मिटाने कन्हाई के पास गांँव जरूर आता था। इसी दरमियान एक दिन रघु पुष्पी को सांड से बचाने के क्रम में बुरी तरह घायल हो गया ।घायल रघु का कृतज्ञता वस पुष्पी ने बड़े मनोयोग से सेवा शुश्रूषा की और एक रात दोनों जवान तन एकाकार हो गए ,जिसकी इजाजत हमारा समाज नहीं देता। रघु कन्हाई के बूते वकालत पढ़ने शहर चला गया । पुष्पी भोली थी, तन के आवेग को पुष्पी का मन संभाल ना सका और यही एक क्षणिक आवेग ने सबका जीवन सर्वनाश कर डाला। कन्हाई पुष्पी पर जान देता था। पुष्पी को पाने के लिए पुष्पी के संपन्न पिता से बराबरी के धुन में कामयाबी तो हासिल कर ली। उसे लगा , वह पुष्पी को पाने योग्य हो गया है। वह मन ही मन पुष्पी से शादी की तैयारियां भी कर लिया। अपने पिता को पुष्पी के पिता से मिलने को राजी भी कर लिया। कन्हाई के पिता अपने काबिल बेटे कन्हाई के कामयाबी से इतराते हुए पुष्पी जैसी सुंदर सुशील बहू की सेवा और पोते के साथ अपनी बचपन फिर से जी लेने की अरमान भी पाल बैठे। कन्हाई पुष्पी और रघु के शारीरिक संबंध से अनजान पुष्पी से अपने प्रेम का इजहार भी किया था। इस पर पुष्पी बुरा मान गई थी जिसे कन्हाई ने पुष्पी का नखरा समझा।

 

इसी बीच पुष्पी गर्भवती हो गई जो किसी से छिपा ना रहा। कलंकित पुष्पी इस कलंक का पंचों द्वारा नाम पूछे जाने पर बीच में कन्हाई आ गया कलंक का दंश झेलने क्योंकि कन्हाई अपने लंगोटिया यार रघु को हर हाल में कामयाब देखना चाहता था उसे पढ़ने के लिए कन्हाई ने अब तक स्वयं अपनी पढ़ाई छोड़ दी । किसान की पूंजी कहा जाने वाला हल बैल बेचकर पिता की गालियां और मार सहता रघु के पढ़ाई के लिए पैसे का इंतजाम करता रहा। पुष्पी के इस कलंक का नाम लेने मात्र से रघु का कैरियर और तन्हाई का संघर्ष और अरमान क्षण भर में समाप्त हो जाता इसलिए कन्हाई ने दोस्ती के प्रकाष्ठा को लांघकर रघु को बर्बाद होने से बचाने के लिए सारा कलंक स्वयं के सिर ले लिया।

कार्यक्रम से समय बितता रहा। एक दिन रघु शहर का जाना माना कामयाब वकील बन गया ,पर उसके कामयाबी के पीछे कन्हाई का सहयोग छोटा पड़ने लगा तो उसने रीमा नाम की एक अमीर लड़की का आर्थिक सहारा लिया ताकि वह कन्हाई की त्याग का उसके अरमानों का लाज रख सके। लेकिन हुआ कुछ और रीमा स्वयं को रघु के कामयाबी का एकमात्र नायिका समझती थी और जब रघु की कामयाबी चरम पर पहुंची तो उसने अपने एहसानों के बोझ तले दबे रघु से शादी रचा ली। जबकि रघु का मन पुष्टि के लिए तड़पता रहा ।

कन्हाई कलंकित था। गांँव समाज का अपराधी था। गांँव के पंचायत में उसे 6 माह के लिए गांँव निकाला की सजा मिली। साथ ही अपनी संपत्ति में से पुष्पी के जीवन यापन के लिए जमीन और रहने के लिए एक घर देने का फरमान भी हुआ।क्योंकि पुष्पी रघु को चाहती थी इसलिए कन्हाई के साथ रहने से मना कर गई। इस सदमे से कन्हाई के पिता कन्हाई को कोसते दुनिया से चल बसे। इससे पुष्पी अपराध बोध से ग्रसित होगई । रघु की शादी का निमंत्रण पत्र के माध्यम से गांँव पहुंँचा तो उस समय कन्हाई गांँवनिकाला था। पत्र पुष्पी के हाथ मिली। पुष्पी शहर जाकर शादी रोकने और रघु को सबक सिखाने की ठानी उसी रात पुष्पी प्रसव पीड़ा से गुजर कर एक नन्हीं पुष्पी को जन्म दिया। पुष्पी ना जा सकी , पर रघु के प्रति दिल में नफरत हो गया । जब कन्हाई छः माह बाद सजा बिता कर घर लौटा तो उसने पाया, सब बेगाने हो गए। पिता नहीं रहे ।पुष्पी किसी और की थी। रघु मतलबी निकला तो मन में बैराग उत्पन्न हो गया , लेकिन वह पूर्ण बैरागी नहीं हो सका। माया में जकड़ा द्वन्द्व में फंसा उलझा रहा। कन्हाई और पुष्पी एक ही घर में साथ रहते दुनिया के लिए पति पत्नी थे, पर दोनों अलग थे। पुष्पी रघु के शादी की खबर से रघु से नफरत कर बैठी और कन्हाई को बेवजह सजा दिलाने और विरह वेदना में पिता की मौत का स्वयं को जिम्मेवार मानकर पापबोध से ग्रसित कन्हाई को चाहते हुए देवता मानते हुए भी संकोच बस वह अपने प्रेम का इजहार ना कर सकी। कहीं कन्हाई उसे गले पड़ना ना समझ ले।

इधर कन्हाई पुष्पी को चाहते हुए भी प्यार का इजहार संकोचवश नहीं कर सका कि कहीं पुष्टि कन्हाई को मजबूरी का फायदा उठाने वाला कामी पुरुष ना समझ ले। दोनों एक दूसरे से प्यार का पहल चाहते थे। पर संकोच वंश दोनों मौन थे । पुष्पी फिर बीमार रहने लगी थी। पेट में काफी दर्द रहता था। कलंकित पुष्पी की सेवा के लिए कोई आगे नहीं आया। अंततः भावुक, प्रेमी हृदय कन्हाई को पुष्पी और उसकी बेटी अनुराधा की दयनीय स्थिति देखकर आगे आना पड़ा। कन्हाई सेवा में रख था तो आपसी संवाद से उन दोनों के संकोच निराधार साबित हुए। दोनों के दिल मिले। दोनों एक हो गए। दुनिया की नजरों में पति-पत्नी तो थे ही अब सच्ची में पति पत्नी के संबंध से बंध गए। कन्हाई का प्यार पाकर पुष्टी खिल उठी।उनका खोया संसार मिल गया। दांपत्य जीवन में पुष्पी अपनी बीमारी भूल बैठी। उन्हें अब किसी से कोई शिकवा शिकायत ना रही। इसी बीच पुष्पी ने एक बच्चे को जन्म दिया। खुशियांँ दोगुनी हो गई, पर यह खुशी ज्यादा दिनों तक ना टिक सकी। बच्चे के जन्म के समय ही डॉक्टर ने जानलेवा पथरी की बीमारी से अवगत करा दिया था और जल्द से जल्द ऑपरेशन की सलाह दी थी। अपने सुख संसार में खोई पुष्पी को कहांँ पता था कि एक अनहोनी उसके सिर बैठी है। एक दिन पुष्पी के पेट में भयानक दर्द उठा। अस्पताल में डॉक्टर ने ऑपरेशन के पैसे जमा करने को कहा। कन्हाई पैसे के लिए खूब दौड़ा जब पैसे ना मिले तो नामी वकील अपने लंगोटिया दोस्त रघु की याद आई। वह भागा रघु के घर गया पर वह शहर से बाहर था। पत्नी रीमा ने दुत्कार कर कन्हाई को भगा दिया। कोई उपाय ना देखकर कन्हाई ने अपने पुरखों की सारी जमीन जायदाद मिट्टी के मोल बेच डाले, पर जबतक वह पैसे लेकर अस्पताल पहुंँचता पुष्पी संसार छोड़ चुकी थी। कन्हाई दो बच्चों के लालन-पालन में भाग्य को कोसता दिन काट रहा था।

इधर निसंतान रघु और बीमा बच्चे के लिए दर-दर भटकते ठोकरे खा रहे थे। जिस-जिस बच्चे को गोद लेना चाहा सभी धरन के लोभी माता-पिता निकले। तभी रघु को अपनी माटी, अपना दोस्त कान्हा याद आया। वह गांँव आया और कन्हाई से भीख में बच्चे मांँगे। बेटी अनुराधा तो स्वयं रघु की ही बेटी थी। रघु के आग्रह पर उसने अपने अबोध बेटे को भी उसके उज्जवल भविष्य की कामना से रघु को सौंप दिया। बच्चों की विरह वेदना ने कन्हाई के हृदय में सुषुप्त वैराग्य को जगा दिया और वह बैरागी कन्हाई स्वयं को देश सेवा, समाज सेवा में समर्पित कर दिया।

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