*उग्रवादियों के हाथों चकला अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट में जान गवांने और प्लांट में जमीन देने वाले रैयतों का नहीं हुआ भविष्य उज्जवल : अयुब खान*
चंदवा संवाददाता मुकेश कुमार सिंह की रिपोर्ट
*अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट के कॉरपोरेट घराने ने जान गवाने और जमीन देने वाले रैयतों को पहुंचा दिया बदहाली के कगार पर*
*प्रत्येक माह 8 हजार में कर रहे हैं प्रोजेक्ट में रैयत काम*
*कॉरर्पोरेट घरानों द्वारा रैयतों से छल कपट धोखा दिए जाने के कारण रैयतों को कॉरपोरेट घरानों पर नहीं हो रहा भरोसा*
*चकला प्लांट का स्क्रैप बिकने की खबर से रैयत वर्कर हैं चिंतित*
*चकला, चंदवा (लातेहार)* चकला अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट के कॉरपोरेट घराने ने उग्रवादी हमले में जान गवांने और प्रोजेक्ट में जमीन देने वाले रैयतों के परिवारों को पहुंचा दिया है बदहाली के कगार पर।
*सामाजिक कार्यकर्ता एवं कामता पंचायत समिति सदस्य अयुब खान कहते हैं कि चकला अभिजीत पावर प्लांट के रात्रि प्रहरी (नाईट गार्ड) पर करीब दस वर्ष पहले उग्रवादियों ने हमला कर दिया था, इस हमले में चार नाईट गार्ड की मौत घटनास्थल पर हो गई थी और एक घायल हो गया था*।
इनमें दो मृतकों के आश्रितों को सरकारी नौकरी लगी लेकिन दो परिवार अभी भी बदहाली के कगार पर हैं।
उग्रवादियों के हांथो जान गवांने और प्लांट में जमीन देने वाले रैयतों का भविष्य सवंरने के बजाय और उजड़ गया।
जान गवांने और जमीन देने के बाद भी 8 हजार रुपए में प्रत्येक माह प्लांट में उन्हें कार्य करना पड़ रहा है जो इस महंगाई के दौर में कुछ भी नहीं है।
प्लांट का स्क्रैप बिकने की खबर से प्रोजेक्ट वर्कर में कार्य कर रहे रैयत इधर खाशे चिंतित हैं उनकी निंद उड़ गई है।
प्लांट जब लगा था तो लोगों को सपना था कि रैयतों को अपनी जमीन की अच्छी मुआवजा मिलेगा, एक सदस्य को प्रोजेक्ट में नौकरी, बच्चों की पढ़ाई के लिए अच्छे स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बेहतर अस्पताल खुलेगा लेकिन कुछ ही वर्षों के बाद यह सपना टुट गया।
रैयतों को उनकी जमीन का मुआवजा राशि भी पुरा नहीं मिला, रैयतों की मुआवजा राशि में भी बंदरबांट कर लिया गया।
प्लांट चालू हुए करीब तीन चार वर्ष हुआ ही था कि उग्रवादियों ने करीब दस वर्ष पहले चकला अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट के 5 नाईट गार्ड पर हमला कर उनकी जान ले ली इसमें एक जो घायल था वह बच गया।
हमले में जिनकी मौत हुई थी उसमें रामदुलार साव, दृगपाल लोहरा दोनों नावा टोली चकला, बिसरु उरांव सदाबर, ईन्ताफ खान चकला शामिल हैं।
घायल नावाटोली निवासी बंधनू उरांव को बड़ी मुश्किल से ईलाज के बाद बचाया जा सका।
इसमें अनुकंपा के अधार पर दो लोगों स्व0 ईन्ताफ खान के पुत्री और स्व0 रामदुलार साव के पुत्र को सरकारी नौकरी लगी हुई है।
दो मृतक के परिजनो को शिर्फ मुआवजा के राशि से ही संतोष करना पड़ा है।
इनके आश्रितों को करीब आठ हजार रुपए प्रत्येक माह मिलते हैं जो न्युनतम मजदूरी से भी काफी कम है।
प्लांट में कार्य कर रहे रैयत वर्कर को 6 हजार से लेकर आठ हजार रुपए प्रति माह मिलते हैं जो वर्कर के साथ एक तरह का शोषण है।
*इधर पलांट के स्क्रैप बिक जाने की शहर में चर्चा से रैयत वर्करों की नींद उड़ी हुई है*।
एक एक वर्कर को करीब हजार से लेकर लाखों रुपए मजदूरी बकाया है, उन्हें चिंता है कि प्लांट से स्क्रैप चला गया तो बकाया पैसा का किया होगा।
सरकार के साथ जब कॉरपोरेट घराने समझौता किए थे उस समय कॉरपोरेट घरानों ने पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन नीति के तहत जमीन दाताओं को जमीन की मुआवजा देने, प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले रैयत परिवारों का पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन करने, प्रभावित परिवारों के जीवन निर्वाहन स्तर का उत्थान करने, परिवार के सदस्यों को प्रोजेक्ट में रोजगार देने, आधारभूत संरचनाओं के निर्माण स्वास्थ्य, शिक्षण एवं अन्य सामुदायिक सुविधाएं आदि पूर्ण करने का वादा किया था जो वादा ही रह गया।
*एक तरफ प्लांट से स्क्रैप उठाने की तैयारी हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ रैयत वर्कर अपने बकाए राशि के भुगतान के लिए, रोजगार बरकरार रहे इसके लिए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं*।
*जिले के प्रखंडों में* *हिंडालको कंपनी को चकला कोल ब्लॉक, एनटीपीसी NTPC कंपनी को बनहरदी पंचायत कोल ब्लॉक*,
*डीवीसी कंपनी को तुबेद में कोल ब्लॉक आवंटित किया गया है*।
इन्हीं कॉरर्पोरेट घरानों का, रैयतों से जमीन लेने की जोर अजमाइश चल रही है वहीं गांवों में कॉरपोरेट घरानों को रैयत अपनी जमीन देना ही नहीं चाहते हैं।
*रैयत, विस्थापन और पुनर्व्यवस्थापन को लेकर कॉरपोरेट घरानों का विरोध लगातार कर रहे हैं*।
रैयतों का विरोध मारपीट मुकदमा तक पहुंच चुका है।
*कॉरर्पोरेट घरानों द्वारा रैयतों से छल कपट धोखा दिए जाने के कारण रैयतों को कॉरपोरेट घरानों पर भरोसा नहीं हो रहा है*।
*कॉरर्पोरेट घरानों के प्रति विरोध कम होने के बजाय और बढ़ ही रहें हैं*।
*चकला अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट में रैयतों की जमीन भी गई, पैसा भी गया, आज अधिकांश रैयतों की स्थिति बदसे बदतर हो गई है, आठ हजार की माहवारी रोजगार भी छिन्न जाने की स्थिति में पहुंच गया है*।
चकला अभिजीत ग्रुप पावर प्लांट में कार्य कर रहे कर्मीयों की बकाए राशि के भुगतान के मामले में उनके शंकाओं को दूर करने उन्हें विश्वास मे लेने का प्रयास किसी स्तर से होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है।
*रैयत वर्कर अपने हक अधिकार को लेकर एक बार फिर से आंदोलन करने की रणनीति बना रहे हैं*।