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सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का निधन

दिल्ली:सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश का निधन हो गया है. वो 81 वर्ष के थे.स्वामी अग्निवेश ने दिल्ली के एक अस्पताल में शुक्रवार शाम को अंतिम साँस ली.उन्हें सोमवार को लिवर (यकृत) से जुड़ी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था.उनका इलाज कर रही डॉक्टरों की टीम ने बताया है कि ‘लिवर सिरोसिस से पीड़ित स्वामी अग्निवेश के कई प्रमुख अंगों ने काम करना बंद कर दिया था जिसकी वजह से उन्हें अंतिम वक़्त में वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ा, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.’21 सितंबर 1939 को जन्मे स्वामी अग्निवेश सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे.

स्वामी अग्निवेश की बंधुआ मुक्ति मोर्चा और सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष स्वामी आर्यवेश ने बताया है कि ‘उनके पार्थिव शरीर को सुबह 11 बजे से दोपहर दो बजे तक अंतिम सार्वजनिक श्रद्धांजलि के लिए दिल्ली की जंतर-मंतर रोड स्थित कार्यालय में रखा जाएगा.’

उन्होंने बताया, 12 सितंबर की शाम हरियाणा के गुरुग्राम ज़िले में स्थित अग्निलोक आश्रम में उनका अंतिम संस्कार होगा

स्वामी अग्निवेश: मानवतावादी, राजनेता और रियलिटी शो के किरदार

बंधुआ मज़दूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़नेवाले और नोबेल जैसा सम्मानित समझे जाने वाला ‘राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड’ पा चुके स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर कई तरह की राय रहीं.1939 में एक दक्षिण भारतीय परिवार में जन्मे स्वामी अग्निवेश शिक्षक और वकील रहे, मगर साथ ही उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम के एंकर की भूमिका भी निभाई और रियलिटी टीवी शो बिग बॉस का भी हिस्सा रहे.1970 में उन्होंने एक राजनीतिक दल ‘आर्य सभा’ की शुरुआत की थी और आपातकाल के बाद हरियाणा में बनी सरकार में वे मंत्री रहे.

बंधुआ मज़दूरी के ख़िलाफ़ उनकी दशकों की मुहिम तो जगज़ाहिर है, उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम के संगठन की शुरुआत की और हमेशा ही रूढ़िवादिता और जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ने का दावा करते रहे.

अस्सी के दशक में उन्होंने दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर लगी रोक के ख़िलाफ़ भी आंदोलन चलाया था.

साल 2011 के जनलोकपाल आंदोलन (जिसे कुछ लोग अन्ना आंदोलन भी बुलाते है) के समय ‘अरविंद केजरीवाल पर धन के ग़बन’ का उनके द्वारा लगाया गया आरोप काफ़ी समय तक लोगों को याद रहा. स्वामी अग्निवेश मतभेदों के चलते इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दूर हो गए थे.

आर्य समाजी होने के कारण वे मूर्तिपूजा और धार्मिक कुरीतियों का हमेशा विरोध करते रहे. उन्होंने कई बार ऐसी बातें खुलकर कहीं जो ‘धार्मिक लोगों को बहुत नागवार लग सकती हैं.’

 

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