जमशेदपुर: हेल्पिंग इंडिया टुगेदर संस्था की ओर से कल दिनांक 5 सितंबर शनिवार को प्रातः 10:00 बजे साकची आम बागान में शिक्षक सम्मान कार्यक्रम रखा गया है। इस दौरान कई लोगों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कुणाल सारंगी उपस्थित रहेंगे।
शिक्षक दिवस के बारे में
हमारे जीवन समाज और देश में शिक्षकों के योगदान को सम्मान देने के लिये हर वर्ष 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस मनाया जाता है। 5 सितंबर के दिन शिक्षक दिवस मनाने के पीछे एक बड़ा कारण है। 5 सितंबर को ही भारत के एक महान व्यक्ति, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन था। वो शिक्षा के प्रति अत्यधिक समर्पित थे और एक अध्येता, राजनयिक, भारत के राष्ट्रपति और खासतौर से एक शिक्षक के रुप में जाने जाते थे। अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन को देने वाले डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में जीवन से जुड़ी
‘राष्ट्र शिक्षक’ के जीवन से जुड़ी 10 अहम बातें
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1962 में भारत के राष्ट्रपति बने। एक बार कुछ विद्यार्थियों ने 5 सितंबर को उनका जन्मदिन मनाने का निवेदन किया। उन्होंने कहा कि 5 सितंबर को मेरा जन्म दिन मनाने के बजाय क्यों नहीं आप इस दिन को शिक्षकों के उनके महान कार्य और योगदान को सम्मान देने के लिये इस दिन को शिक्षक दिवस के रुप में मनाते। उनके इस कथन के बाद पूरे भारत भर में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को चेन्नई से 64 किमी दूर तिरुत्तनि स्थान में हुआ था। राधाकृष्णन के पुरखे पहले कभी ‘सर्वपल्ली’ नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में उन्होंने तिरुत्तनि गांव में रहने का फैसला किया। इसी कारण सर्वपल्ली और उनके परिजन अपने नाम के पूर्व ‘सर्वपल्ली’ लगाते थे।
राधाकृष्णन जब पैदा हुए थे उस समय मद्रास के ब्राह्मण परिवारों में कम उम्र में ही शादी सम्पन्न हो जाती थी और राधाकृष्णन भी उसके अपवाद नहीं रहे। 1903 में 16 वर्ष की आयु में ही उनका विवाह दूर के रिश्ते की रिश्तेदार ‘सिवाकामू’ के साथ सम्पन्न हो गया। उस समय उनकी पत्नी की आयु मात्र 10 वर्ष की थी।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद उन्होंने 1904 में कला संकाय परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। दर्शनशास्त्र में एम०ए० करने के पश्चात् 1916 में वे मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। बाद में उसी कॉलेज में वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ॰ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गयी।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया था।
डॉ॰ राधाकृष्णन के पिता का नाम ‘सर्वपल्ली वीरास्वामी’ और माता का नाम ‘सीताम्मा’ था। उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे। उनके पिता काफ़ी कठिनाई के साथ परिवार का निर्वहन कर रहे थे। इस कारण बालक राधाकृष्णन को बचपन में कोई विशेष सुख प्राप्त नहीं हुआ।
डॉ॰ राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत एक प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक, उत्कृष्ट वक्ता और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। वे स्वतन्त्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे। इससे पूर्व वे उपराष्ट्रपति भी रहे। राजनीति में आने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण ४० वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये थे। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिये जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों। शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिये अपितु उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर भी अर्जित करना चाहिये। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु 87 साल की उम्र में 17 अप्रैल 1975 को हुई थी।