घाटशिला -कमलेश सिंह
पूरे झारखंड में करमा पर्व शनिवार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए मनाया जा रहा है। करमा पर्व झारखंड के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और काफी लोकप्रिय है. यह पर्व भादो महीने के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ झारखंड में ही नहीं मनाया जाता बल्कि बंगाल, असम, ओड़िशा, तथा छत्तीसगढ़ में भी पूरे हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना की जाती है। झारखंड के लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई हो जाने के बाद यह पर्व मनाया जाता रहा है।
पहाड़-पर्वत, जंगल-झाड़, नदी-नाले, पेड़-पौधे की होती है पूजा
धरती अपनी हरियाली की चादर फैला रही होती है तब करम पर्व खुशियों से मनाने का आनंद और अधिक बढ़ जाता है। आज देश के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि पहाड़-पर्वत, जंगल-झाड़, नदी-नाले, पेड़-पौधे आदि हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन गयी है। पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं। जिससे समय पर वर्षा होती है। इसके बिना हमारा जीवन असंभव है। क्योंकि प्रकृति के इन गुणों को पहचान कर इनकी रक्षा करनी होगी।
वनस्पतियों को नमन
झारखंड में पेड़-पौधे की पूजा का प्रथा सदियों चली आ रही है। प्रकृति के प्रति मानव समाज की यह परम्परा बहुत पुरानी है आदिमानवों ने जब प्रकृति के उपकार को समझा तब वह इसके प्रति श्रद्धावन हो उठा। यह आज भी इसकी प्रासंगिकता है। इसमें प्रकृति का संदेश निहित है। जैसे करम में करम डाली, सरहुल में सखुआ फूल, जितिया में कतारी आदि का पूजा करते आ रहे हैं। पौराणिक ग्रंथों में भी यह कहा गया है – वनस्पत्यै नम: वनस्पतियों को नमन।
एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जावा जगाने का गीत गाती है युवतियां।