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प्राकृतिक धरोहर एवं आध्यात्म का केंद्र है पोटका के बांका पहाड़

पोटका प्रखंड अंतर्गत झारखंड के पूर्वी सिंहभूम एवं उड़ीसा के मयूरभंज जिले के सिमाना लाइन पर टांगराईन एवं कोपे गांव के दक्षिणी छोर में अवस्थित बंका पहाड़ को राज्य के प्राकृतिक धरोहर के रूप में माना जाता है। बंका पहाड़ बांकमूड़ी पहाड़ के नाम से भी परिचित है ।इसका नामकरण प्रकृति देवता बंका ठाकुर से हुआ। कोई दशक पहले बंका के चारों ओर जंगल झाड़ी से भरा था। जब क्षेत्र में गांव बसना शुरू हुआ तब बंका ठाकुर का आविर्भाव हुआ जो क्षेत्र के जनसमूह को जंगली जानवरों एवं भूत प्रेतों से रक्षा करने के साथ साथ अन्न, वस्त्र एवं वर्तन मुहैया करवाता था।
बंका पहाड़ के समीप और तीन प्राकृतिक धरोहर दरबार चाटानी, धान घोरा एवं डोंगरा पहाड़ अवस्थित है। पूर्वज कहते हैं दरबार चाटानी में देवताओं का दरबार बैठता था जिसका प्रमाण आज भी विशालकाय पत्थर में दरबार के जगह पर घोड़ा ,हाथी का पदचिन्ह एवं रथ के चक्का का चिन्ह,चुल्हा साक्षी के रूप में पत्थर पर अंकित है। साथ ही पांच सो फीट ऊंची विशालकाय पत्थर के बीच एक गड्ढा है जहां 365 दिन पानी रहता है। उस गड्ढे में एक धान का पौधा होना सूचित करता है कि संबंधित वर्ष सूखा पड़ेगा या आवाद होगा। यहां अवस्थित धानघरा की एक अपूर्व महिमा थी। धानघरा में बंका ठाकुर को पुजते हुए अगर कोई वर्तन ,धान एवं कपड़ा मांगता है तो उस जमाने में बंका ठाकुर उसे मुहैया करवाते थे। मगर सर्त रहता था कि वह उतना ही समान वापस करेगा। कहते हैं एक बार की घटना है किसी भक्त ने धानघरा से अच्छा किस्म का धान लाया एवं लौटाते समय चिंगड़ी धान लौटाया और एक भक्त झूठा वर्तन वापस किया जिसके कारण बंका ठाकुर ने क्रोधित हो कर ये सिलसिला बंद कर दिया।
हर वर्ष बंका ठाकुर का विधि विधान से क्षेत्र के जंताओं द्वारा पूजा किया जाता है। चुंकि बंका पहाड़ का मुख्य अंश कोपे मौजा में अवस्थित है अतः कोपे मौजा के नाया स्वर्गीय पूर्ण भूमिज के बंशजों द्वारा जेष्ठ माह प्रथम सप्ताह के शुक्रवार को खजूर पत्र से गिरा बांधकर (जो निमंत्रण पत्र का सूचक है) आसपास के सभी ग्रामीणों को निमंत्रण बांका शिकार के रूप में करते हैं उसके वाद वाला शुक्रवार बांका ठाकुर का विधि विधान से पूजा करके बांका शिकार के उपरांत सुतामटांड में रात्रि जागरण करने की परंपरा है । जिसे सिंगराई के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकृति के देवता को वर्षा पानी लाने का देव भी कहा जाता है जिसका पूजा जानताल के नाम से परंपरा से होती आ रही है। एक बार की बात है टांगराईन,जोजोडीह व सिदिरसाई मौजा के नाया अपने दल बल के साथ बंका में बरसा लाने हेतु पूजा करने गए । पूजा समाप्ति के बाद कुछ औजार भूल करके वहीं छोड़ कर आ गए । कुछ दूर आने के बाद देखे कि हमने कुछ औजार वहीं पर छोड़ कर आ गए हैं, तब नाया एवं कुछ आदमी उन औजारों को लाने के लिए पूजा स्थल वापस गए। कुछ दूर से ही देखे कि वहां एक शेर पाईचरी कर रहा है एवं अधिक संख्या में बाघ मधुमक्खी मंडरा रहें हैं। यह देख कर नाया एवं कुछ आदमियों को औजार लाने का साहस नहीं हुआ। वापस आकर यह किस्सा नाया ने सभी को सुनाया एवं सभी अपने-अपने घर आ गए। रात के समय नाया को स्वप्न हुआ। स्वप्न में बंका ठाकुर ने कहा हम सभी देवता प्रसाद ग्रहण कर रहे थे और तुमलोग औजार लेने वापस आ गए जिससे बंका ठाकुर ने क्रोधित होकर कहा तुम लोगों को फिर कभी यहां पूजा के उद्देश्य नहीं आना पड़ेगा तुम लोग जो अस्त्र यहां छोड़ कर गए हो मैं यहीं से वे अस्त्रों को फेंक दिया हूं जहां जहां गिरा उस जगह पर विधि विधान से मेरा पूजा करोगे। तब सपने में ही नाया ने पूछा हमलोग इतना बड़ा जगह में कहां खोजेंगे कृपया निश्चित जगह बता दें। तब बंका ठाकुर ने दो जगह का नाम बता दिया दूसरे दिन नाया ने अपने संगे साथी को सपना का किस्सा बता दिया एवं सब मिलकर अस्त्र को खोजने निकले खोजते – खोजते बठिन देवडूंगर के सामने खुदी महुल पेड़ के निचे मिला एवं टांगी मौजा जोजोडीह के उत्तरी छोर पर स्थित देशवाल जाहिरा पर पाया गया। तब से इन दोनों जगहों पर बंका एवं उसके सहपाठी देवताओं की पूजा , जानताल के नाम से होती आ रही है।
पहले उक्त स्थानों पर कोई मौजा के जनताओं द्वारा पूजा किया जाता था। वर्तमान टांगराईन ,जोजोडीह व सिदिरसाई मौजा के जंताओं द्वारा ये परंपरागत पूजा को किया जाता है।भाद्र महिने में तीनों मौजा के जनताओं द्वारा एक बैठक कर पूजा की तिथि तय करतें हैं। पूजा का कार्यक्रम लगातार तीन दिनों तक चलता है। पहला दिन दूध ढाल होता है जो परंपरा से टांगराईन गांव निवासी *कासिनाथ मंडल* के वंशजों द्वारा दूध दिया जाता है वही दूध नाया तीनों मौजा के ग्रामीणों के समक्ष विधि विधान से पूजा करके डालता है। उसी दिन नाया के साथ चयनित तीन ग्रामीण उपवास रहते हैं उन्हें झुंपार करवाया जाता है। जिन्हें देवता का आविर्भाव होता है और वे वर्षा की स्थिति को बतातें हैं साथ ही विशेष पूजा की अगर जरूरत हो वह भी बताते हैं। उसी रात नाया यानी मुख्य पुजारी देवडुंगूर में एक रांगुआ मुर्गा का पूजा करता है एवं रात में वहीं सोता है। कहते हैं पहले वर्षा नहीं होने पर मुख्य पुजारी को वही बांध दिया जाता था।
दूसरे दिन डोंगरा ठाकुर के नाम पर जो कि बंका ठाकुर का पड़ोसी है देशवाल जाहिरा में एक भेड़ का बलि चढ़ाया जाता है। यहीं पर हर पांच साल के अंतराल में एक भेंस का बलि चढाया जाता है।तीसरे दिन देवडूंगूर के सामने खुदी महुल पेड़ वर्तमान विशाल बरगद पेड़ के नीचे बकरा बलि चढ़ाया जाता है जिसके मांस को उपस्थित सभी ग्रामीण खिचड़ी बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस तरह बंका पहाड़ा झारखंड उड़ीसा का प्राकृतिक धरोहर के साथ-साथ अध्यात्म का केंद्र भी है

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