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माता पिता के लिए उनकी संतानें अहम और जीवन की उन ज़रूरतों में से हैं जिन्हें हम अपने आप से अलग कर ही नहीं सकते, सिंधु मिश्रा

माता पिता के लिए उनकी संतानें अहम और जीवन की उन ज़रूरतों में से हैं जिन्हें हम अपने आप से अलग कर ही नहीं सकते, शैशव काल से ही हम अपने बच्चों की परवरिश ऐसे करें ताकि बच्चों में संस्कार निर्माण के साथ साथ हम उनमें कर्त्तव्यपरायणता के गुणों का विस्तार कर सकें आज बच्चों की अच्छी शिक्षा के साथ साथ अच्छे और महंगे शिक्षण संस्थानों के प्रतिस्पर्धा में हम लगे हैं, मै मानती हूँ कि अच्छे संस्थानों में शिक्षा प्राप्ति की बात ही कुछ और है, पर सिर्फ शिक्षा से कुछ नही होगा हमें उनके उज्जवल भविष्य के लिए उनमें सामाजिक,व्यावसायिक शिक्षा के अलावा आध्यात्मिक ज्ञान देना भी परम आवश्यक है।

घर पर व्यवहार, सदाचार और निडरता जैसे गुणों की शिक्षा हमें ही देनी होगी।
तभी हमारे बच्चे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए विकास की ऊंचाइयों को छू सकेंगे,यह मेरी व्यक्तिगत सोंच है,बच्चों के संस्कार निर्माण की जिम्मेदारी हमारी है,वहीं हमें भी अपने आचरण पर विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है,

कहीं जाने अनजाने हमारी कोई हरकत उनके विकास और सदाचार के मार्ग में बाधा तो नहीं बन रही, कहीं हमारा कोई व्यवहार उनके अच्छे संस्कार के बीच तो नही आ रहा, जहाँ एक ओर बेटे को हम कुल दीपक कहते हैं वहीं बेटियां उन कुल दीपकों को रोशनी देने वाली जन्मदात्री माता होती हैं ,अतः बिना भेदभाव किए बेटे बेटियों पर अपनी समदृष्टि रखें उनपर प्यार, दुलार , ममता लुटाएं एक आदर्श माँ बाप बनें।

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