नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने एक अंतरजातीय जोड़े की याचिका पर सुनवाई करने के बाद फैसला सुनाया है। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि लड़की कोई मवेशी या निर्जीव वस्तु नहीं…बल्कि एक स्वतंत्र व्यक्ति है।
लाइव लॉ के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि वयस्क होने पर लड़की अपनी इच्छा के अनुसार फैसले ले सकती है। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने अंतरजातीय विवाहों के समर्थन में वेदों व भगवद गीता का भी हवाला दिया।
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि भारत में एक महिला को हमेशा न केवल बराबर माना जाता था, बल्कि वैदिक युग में तो पुरुषों की तुलना में महिला को उच्च स्थान दिया जाता था। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मध्यकालीन समय में हमारे समाज में कुछ बुराइयों आईं, जिसे अब वर्तमान समय में समाप्त करने की जरूरत है।
लड़की कोई मवेशी या निर्जीव वस्तु नहीं है, वह एक स्वतंत्र इंसान है-
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक लड़की कोई मवेशी या निर्जीव वस्तु नहीं है, वह एक स्वतंत्र इंसान है, जिसमें आत्मा हैं और जिसके पास अपने अधिकार हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि व्यस्क होने के बाद कोई लड़की अपनी इच्छा से फैसला ले सकती है। न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ ने एक उच्च जाति की महिला (राजपूत) की निचली जाति के व्यक्ति के साथ विवाह से संबंधित याचिका पर सुनवाई करने के बाद यह फैसला सुनाया है।
कोमल परमार ने अंतरजातीय विवाह पर अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट में ये कहा-
कोमल परमार नाम की लड़की ने कोर्ट में कहा कि परिवार द्वारा शादी का विरोध मुख्य तौर पर जाति में अंतर होने की वजह से किया जा रहा है और उसके पिता द्वारा दी गई उन दलीलों का कोई मतलब नहीं है, जिसमें याचिकाकर्ता के आर्थिक रूप से स्थिर न होने और लड़की के मानसिक रूप से कमजोर होने की बात कही गई हैं। उसने बताया कि इन दलीलों के जरिए उनकी शादी को टालने का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय कोर्ट ने कहा कि विचार की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की एक मूलभूत विशेषता है-
किसी व्यक्ति को मिली विचार की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की एक मूलभूत विशेषता है। यह रेखांकित करते हुए न्यायालय ने प्रारंभ में ही कहा कि हम संविधान द्वारा शासित राज्य में रह रहे हैं और जाति के आधार पर जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करके भेदभाव करना भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।