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झारखंड की नियोजन नीति हाईकोर्ट में रद्द, तो इतने शिक्षकों की नौकरी हो जाएगी खत्म, अब क्या होगा

By Rajdhani News Sep 23, 2020 #education #niti #ranchi

Ranchi

झारखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्य की नियोजन नीति को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए कहा कि सरकार की यह नीति संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। इस नीति से एक जिले के सभी पद किसी खास लोगों के लिए आरक्षित हो जा रहे हैं। जबकि शत-प्रतिशत आरक्षण किसी भी चीज में नहीं दिया जा सकता।

जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने इस नीति को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना को भी निरस्त कर दिया। अदालत ने राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया को रद्द करते हुए इन जिलों में फिर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। जबकि 11 गैर अनुसूचित जिलों में जारी नियुक्ति प्रक्रिया को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला भी दिया है।

झारखंड सरकार ने वर्ष 2016 में तृतीय और चतुर्थवर्गीय पदों पर नियुक्ति के लिए नियोजन नीति बनायी थी। इसमें अनुसूचित जिलों की नौकरी में सिर्फ उसी जिले के निवासियों को ही नियुक्त करने का प्रावधान था। गैर अनुसूचित जिले के लोग इसमें आवेदन भी नहीं कर सकते थे। जबकि गैर अनुसूचित जिले में सभी जिलों के लोग आवेदन कर सकते थे। सरकार ने दस साल के लिए यह प्रावधान किया था।

सरकार की इस नीति को सोनी कुमारी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और इसे समानता के अधिकार का हनन बताया था। कहा था कि सरकार के इस फैसले से किसी खास जिले के लोगों के लिए ही सारे पद आरक्षित हो गए हैं। संविधान के अनुसार किसी भी पद को शत-प्रतिशत आरक्षित नहीं किया जा सकता है। प्रार्थी ने अदालत को बताया था कि वह गैर अनुसूचित जिले की रहने वाली है और अनुसुचित जिले में शिक्षक के पद के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनका आवेदन रद्द कर दिया गया।

 शिक्षक नियुक्ति को भी दी चुनौती

इस नीति के आधार पर जब शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गयी थी, तो सोनी कुमारी ने उसे भी चुनौती दी और कहा कि जब तक अदालत का आदेश नहीं आ जाता है, तब तक नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। इसके बाद अदालत ने नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी और शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में शामिल सभी लोगों को नोटिस जारी कर प्रतिवादी बनाया था। इसके बाद कई लोग प्रतिवादी बने और सरकार की नीति को सही ठहराया। बाद में एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गैर अनुसूचित जिलों में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने की अनुमित दे दी थी।

एकल पीठ से फुल कोर्ट तक पहुंचा मामला 

नियोजन नीति को चुनौती देने वाली याचिका सबसे पहले एकलपीठ में दायर हुई थी। एकलपीठ ने सुनवाई करते हुए प्रथम द्रष्टया सरकार की नियोजन नीति को असंवैधानिक प्रतीत होता बताते हुए, इसे खंडपीठ में स्थानांतरित कर दिया। खंडपीठ में भी इस पर लंबी सुनवाई हुई थी। इसके बाद इसे पूर्ण पीठ में स्थानांतिरत कर दिया गया। पूर्ण पीठ में शामिल जस्टिस एचसी मिश्र, जस्टिस एच चंद्रशेखर और जस्टिस दीपक रौशन की अदालत ने मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद 21 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सरकार ने कहा कि परिस्थिति के अनुसार नीति बनी 

इस मामले में सरकार की ओर से कहा गया था कि राज्य की वर्तमान स्थिति और परिस्थिति को देखते हुए सरकार ने यह नीति बनायी है। स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए यह अस्थायी व्यवस्था की गयी है, जो दस साल के लिए ही है। दस साल बाद यह नीति स्वत: समाप्त हो जाएगी। सरकार ने कहा था कि कई राज्यों में भी इस तरह का प्रवाधान किया गया है। इसलिए यह नीति संवैधानिक है और इसे गलत करार नहीं दिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला 

अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने मामले की सुनाई के दौरान बताया था कि इसी तरह का का प्रावधान कुछ और राज्य सरकारों ने किया है। इन सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी परिस्थिति में किसी के लिए शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैं।

अनुसूचित जिले

रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज।

 गैर अनुसूचित जिले 

पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा व देवघर।

क्या है आदेश

नियोजन नीति असंवैधानिक और समानता के अधिकार के खिलाफ है। किसी भी पद के लिए शत- प्रतिशत आरक्षण नहीं किया जा सकता। अनुसूचित जिले में शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया रद्द, फिर से शुरू होगी वहीं गैर अनुसूचित जिलों में नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने की छूट रहेगी।

क्या होगा असर

राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में नियुक्त हाई स्कूलों के 3686 शिक्षकों की नौकरी जाएगी। झारखंड हाईकोर्ट द्वारा नियोजन नीति रद्द करने के फैसले का असर इन शिक्षकों पर सीधा पड़ेगा। इन जिलों में नियुक्ति के लिए फिर से प्रक्रिया शुरू की जाएगी। दूसरी अन्य नियुक्तियों पर भी इसका असर पड़ सकता है।

क्या है आशंका

झारखंड सरकार इस फैसले फैसले के खिलाफ स‌ुप्रीम कोर्ट जा सकती है। इसके पहले वह हाईकोर्ट में भी पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है। हाईकोर्ट चाहे तो सरकार की ओर से उठाए गए कुछ बिंदुओं पर विचार कर सकती है या याचिका खारिज भी कर सकती है।

कब क्या हुआ

  • 12.12.18 को एकलपीठ में सुनवाई को बाद मामला खंडपीठ में स्थानांतरित
  • 19.9.19 को खंडपीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए पूर्ण पीठ मे याचिका भेजा
  • 17.3.20 को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामला रहने के कारण सुनवाई स्थगित करायी
  • 22.4.20 को प्रार्थी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसला आ जाने की जानकारी दी और सुनवाई शुरू करायी
  • 21.8.20 को हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने फैसला सुरक्षित रखा
  • 21 .9.20 को पूर्ण पीठ ने नियोजन नीति रद्द कर दी ।

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