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भांग से भागेगा कोरोना: कनाडा की कंपनी ने बनाई दवा, भारत में ट्रायल

नई दिल्ली: कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की खबरें आती रहती है। अब खबर यह है कि कोरोनावायरस का इलाज कैनाबिस यानी भांग से किया जाएगा। यह दावा कनाडा की एक दवा कंपनी ने किया है। कंपनी ने एक ऐसी दवा बनायी है जो कोरोना वायरस के लिए बनाई गई टीकों की तरह साइड इफेक्ट्स नहीं है। और यह कोरोना वायरस की वजह से होने वाले दिल संबंधी बीमारियों से भी बचाएगी। कंपनी अपनी दवा का भारत में ट्रायल करने के लिए भारत सरकार से बात कर रही है।

भांग से बनने वाले उत्पाद अमेरिका के कई राज्यों में वैध

बताया जा रहा है कि कनाडा की दवा कंपनी अकसीरा का मानना है कि भांग से बनने वाले उत्पाद अमेरिका के कई राज्यों में वैध है।

कनाडा में भी कई राज्यों में भांग को लीगल घोषित किया जा चुका है। इससे बनने वाली दवाओं में साइकोएक्टिव प्रॉपर्टी होती है। यह मानव के तंत्रिका तंत्र को आराम देती है। जिसकी वजह से शरीर के अन्य हिस्सों में होने वाले दर्द और दिक्कतों से भी राहत मिलती है।

कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों में नई बीमारी

कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को दिल संबंधी एक बीमारी होती है, जिसे एरिथमिया कहते हैं। इस बीमारी में दिल की बीट्स यानी धड़कन सही से नहीं चलती। कभी तेज कभी धीमी चलती है। जबकि, आमतौर पर दिल की धड़कन एक सामान्य फ्लो में चलती है। दिल में एरिथमिया तब होता है जब दिल में जाने वाली इलेक्ट्रिकल इंपल्सेस सही से काम नहीं करती हैं। अगर इसकी सही समय पर जांच न की जाए तो इससे दिल का दौरा पड़ने की आशंका रहती है। या फिर दिल संबंधी अन्य गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।

दवा का नाम कैनाबिडियोल है

अकसीरा दवा कंपनी की कोरोना के लिए बनाई गई दवा का नाम कैनाबिडियोल है। दवा कंपनी का दावा है कि उनकी दवा कई तरह की बीमारियों का इलाज कर रही है। जैसे तेज दर्द का इलाज करता है। कीमोथैरेपी के होने वाले साइड इफेक्ट्स को कम करता है। इसमें एंटीवायरल खूबियां भी हैं। इसलिए कंपनी का दावा है कि यह कोरोना वायरस का इलाज भी कर देगी।

कैनाबिडियोल की कई हैं खासियतें

अकसीरा कंपनी का दावा है कि कैनाबिडियोल (Cannabidiol – CBD) दवा की वजह से दिल की कोशिकाओं में एरिथमिया (Arrhythmia) बीमारी का असर नहीं होता। इसके साथ ही वह हाई-ग्लूकोज की वजह से होने वाली दिक्कतों को भी कम कर देता है। इस दवा की मेडिकल रिपोर्ट हाल ही में ब्रिटिश जर्नल ऑफ फार्मैकोलॉजी में प्रकाशित हुई है।

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